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और मिनट के उनते ही विभाग हो जाते हैं। इसी प्रकार दस हजार वर्ष की स्थिति से नब्बे हजार वर्ष की स्थिति तक असंख्य विभाग-स्थितिस्थान हो जाते हैं।
कहा जा सकता है कि यह असंख्यात स्थितिस्थान सिद्ध करने से लाभ क्या है? इसका उत्तर यह है कि यह विचार निष्कारण नहीं है। गणधर की बारीक बातों पर विश्वास हो जाय तो स्थूल बातों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं रहेगा। जैसे एक गणितज्ञ के बताये हुए बारीक हिसाब पर विश्वास हो जाने पर स्थूल हिसाब पर अविश्वास नहीं होता, इसी प्रकार अगर कोई कहे कि जैनो के शास्त्रों में जो बात बतलाई गई हैं, जो हिसाब बतलाया गया है, उसकी सत्यता का प्रमाण क्या है? तो उसे संतुष्ट करने के लिए यह हिसाब बतलाया गया है। अगर यह हिसाब सही है और इसके सही होने में कोई भी बाधा नहीं है, तो उन महात्माओं की अन्य-अन्य बातों पर भी विश्वास करना चाहिए।
उन महात्माओं ने कहा है :दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गाढा य विवाग-कम्मुणो, समयं गोयम! मा पमायए।।
-उत्त. 10/41 अर्थात्-हे गौतम ! मनुष्य-जन्म दुर्लभ है। बहुत से प्राणियों को अनंतकाल तक यह प्राप्त नहीं होता। कर्म-विपाक की तीव्रता के कारण अनंत काल तक वे इसे पाने में असमर्थ रहते हैं। गौतम! ऐसा अतीव दुर्लभ मनुष्य भव प्राप्त हुआ है, इसलिए 'समय' मात्र का भी प्रमाद न कर।
'समय' का अर्थ ऊपर बतलाया जा चुका है। अगर कोई यह सीख दे कि-बेटा, एक कोड़ी भी मत खोना। तो पिता की सीख मानने वाला पुत्र कोड़ी नहीं खोयेगा और रुपये-पैसे खोएगा? नहीं। जो आज कौड़ी न खोएगा, वह कल रुपये-पैसे की भी बचत करेगा। इसी प्रकार भगवान् ने समय मात्र प्रमाद में न जाने देने का जो उपदेश दिया है, उसे मानने वाला क्या दिन, वर्ष या सारा जीवन प्रमाद में गंवा देगा? नहीं। जो एक समय भी खोएगा वही दिन और आयु भी खो सकता है।
जिन महात्माओं ने ऐसी-ऐसी बारीक बातें बतलाई हैं, उन्हें किसी से कुछ लेना नहीं था। उन्हें किसी प्रकार का स्वार्थ-साधन नहीं करना था। वे सर्वस्व परित्यागी और वीतराग महात्मा थे, सर्वथा निष्काम और परहित निरत थे। पूर्ण ज्ञानी भी थे। उनके असत्य बोलने का कोई कारण नहीं था।
। भगवती सूत्र व्याख्यान २६