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फाटक की रुकावट के कारण वह देखकर भी कुछ कर नहीं सकता-चरित्र का पालन नहीं कर सकता।
मिथ्यादृष्टि की क्रोधादिक प्रकृति तीव्र होती है। वह आत्मा का दर्शन नहीं कर सकता। परन्तु सम्यग्दृष्टि अनन्तानुबंधी चौकड़ी का क्षय या क्षयोपशम कर डालता है, अतः आत्मदर्शन करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होती। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि तीनों ही क्रोधी, मानी, मायी और लोभी तो हैं मगर तीनों में बहुत अन्तर है।
भगवान फरमाते हैं- हे गौतम! नरक के सम्यग्दृष्टि जीव भी क्रोधी, मानी, मायी और लोभी हैं। इसका विचार सत्ताईस भंगों में करना चाहिये, क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव नरक में सदैव होते हैं। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव भी चारों प्रकार के हैं और उनका विचार भी सत्ताईस भंगों से करना चाहिए। किन्तु सम्यग-मिथ्यादृष्टि जीवों में अस्सी भंग पाये जाते हैं, क्योंकि ऐसे जीव कभी नरक में होते हैं, कभी नहीं होते।
अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! नरक के जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं?
किसी भी आपत्ति से ज्ञान नहीं रुक सकता। सुखी और धनवान आदमी चाहे गरीब हो जाय, भूखों मरने लगे लेकिन उसे आंखों से पहले जैसा दिखाई देता था वैसा ही फिर भी दिखाई देगा। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव चाहे सुखी या दुःखी हो, उसके ज्ञान पर पर्दा नहीं पड़ सकता। यह सुख दुःख का वास्तविक कारण भी जान लेता है। यद्यपि भूल तो वैद्य से भी होती है, परन्तु वह रोग होने का कारण जान लेता है, जो वैद्य नहीं है वह रोग का कारण नहीं जानता। इसी प्रकार ज्ञानी अपने दुःख का कारण जानकर उसे मिटाने का उपाय करता है और अज्ञानियों को दुःख का कारण दीखता ही नहीं है। जैसे सिंह तीर या गोली को न पकड़ कर तीर या गोली चलाने वाले को देख लेता है और उसे पकड़ने दौड़ता है, उसी प्रकार ज्ञानी अपने कर्म को जानते हैं और यह भी समझते हैं कि कर्म हमारे ही किये हुए हैं। क्रियते-इति कर्म । अर्थात् कर्ता द्वारा जो किया जाय वह कर्म कहलाता है। यह जड़ कर्म बेचारे मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। यह तो बोध देने के निमित्त हैं।
___ गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने फरमाया-हे गौतम! ज्ञानी होते हैं।
फिर गौतम स्वामी पूछते हैं-उनके कितने ज्ञान होते हैं? भगवान ने फरमाया-तीन ज्ञान होते हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान । मतिज्ञान
- भगवती सूत्र व्याख्यान ६७
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