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मतलब यह है कि घड़ा कुम्हार ने बनाया है, यह तो सभी कहेंगे, मगर उसकी कारण-परम्परा पर-उसके मूल पर विचार करने पर अनेक प्रकार के विवाद उपस्थित हो जाते हैं, यद्यपि कई ऐसे दर्शनशास्त्र भी हैं जो घड़े को काल्पनिक मानते हैं और घड़े की तरह अन्यान्य पदार्थों को भी कल्पना ही समझते हैं। उनके अभिप्राय से ज्ञान या ब्रह्म के अतिरिक्त ओर किसी भी पदार्थ का वास्तव में अस्तित्व नहीं है।
निमित्त कारण वह कहलाता है, जो कार्य की उत्पत्ति में सहायक तो हो, मगर स्वयं कार्य के रूप में न पलटे। जैसे घड़ा बनने में चाक, डंडा आदि। इन कारणों की घड़ा बनाने में आवश्यकता है, मगर वे घड़े को बनाकर अलग रह जाते हैं; स्वयं मिट्टी की भांति घट नहीं बन जाते, अतएव वे उपादान कारण नहीं, वरन् निमित्त कारण है। घड़े में तो मिट्टी आई है, अतएव वही उपादान कारण है।
__इस प्रकार घड़े को घड़ा कहने पर भी जो उपादान और निमित्त कारण को ठीक मानता और जानता है, वही तात्विक दृष्टि से ठीक कहता है-सत्यवादी है; अन्यथा उसे मिथ्याभाषी ही समझना चाहिए।
यह बात दूसरी है कि ऐसी तात्विक बातें एकदम अपनी समझ में न आवें और आप इस सूक्ष्म सत्य का पालन न कर सकें; परन्तु इस ओर ज्ञान बढ़ाना उचित है, बात को ठीक तरह समझे बिना खींचतान करने से आग्रहशील बन बैठने से मृषावाद-क्रिया लगती है।
___ एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि आत्मवंचना ही झूठ है। जहां परवंचना है वहां आत्मवंचना अवश्यंभावी है। मान लीजिए, एक आदमी आपके पास दस रुपये मांगने आया। आपके पास रुपये अवश्य हैं, लेकिन आप देना नहीं चाहते और सत्य बोलने का भी आप में साहस नहीं है। इसलिए आपने कह दिया हमारे पास अभी रुपये नहीं हैं, होते तो दे देता। असल में देने की इच्छा नहीं थी, मगर बहाना आपने यह बनाया कि रुपये नहीं हैं। ऐसा करके आप समझते हैं कि आपने उसे समझा दिया, परन्तु दरअसल आपने अपने आपको धोखा दिया है। कहीं आपके वचन में सत्य होने की शक्ति होती तो क्या होता? सचमुच ही आपके घर में का रुपया गायब हो जाता! मगर आप जानते हैं कि हमारे निषेध कर देने से रुपये कहीं चले थोड़े ही जाएंगे! इस प्रकार तो सत्यवादी की ही बात सत्य हुआ करती है। आपको अपने सत्य पर ही विश्वास नहीं है। १२६ श्री जवाहर किरणावली
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