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उत्तर-गौतम! गर्भ में गया जीव सर्व आत्मा से (सारे शरीर से) आहार करता है, सारे शरीर से परिणमाता है, सर्व-आत्मा से उच्छवास लेता है, सर्व-आत्मा से निश्वास लेता है, बार-बार आहार करता है बार-बार परिणमाता है, बार-बार उच्छ्वास लेता है, बार-बार निश्वास लेता है। कदाचित् आहार करता है, कदाचित् परिणमाता है, कदाचित् उच्छ्वास लेता है; कदाचित् निश्वास लेता है। तथा पुत्र जीव को रस पहुंचाने में कारणभूत और माता के रस लेने में कारणभूत जो मातृ जीव-रसहरणी नाम की नाड़ी है, वह माता के जीव के साथ संबद्ध है और पुत्र के जीवके साथ जुड़ी हुई है। उस नाड़ी द्वारा पुत्र का जीव आहार लेता है और आहार को परिणमाता है। तथा एक और नाड़ी है जो पुत्र के जीव के साथ संबद्ध है और माता के जीव से जुड़ी हुई है। उससे पुत्र का जीव आहार का चय करता है और उपचय करता है। है गौतम! इस कारण गर्भ-गत जीव मुख द्वारा कवल रूप आहार लेने में समर्थ नहीं है।
व्याख्यान पहले विग्रहगति का विचार किया गया था। विग्रहगति एक दो, तीन या कभी-कभी चार समय में समाप्त हो जाती है। इस अल्पकाल में ही जीव पहले का शरीर छोड़कर नये उत्पत्ति स्थान पर पहुंचते समय अर्थात् गर्भ में प्रवेश करते समय और गर्भ में रहते समय जीव की क्या स्थिति होती है, इस विषय में गौतम स्वामी ने भगवान् से प्रश्न किये हैं। अब उन्हीं पर विचार किया जाता है।
गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! गर्भ में उत्पन्न होते समय जीव के इन्द्रियां होती है या नहीं होती?
इन्द्रिय का अर्थ कान, नाक, आंख, जीभ और त्वचा है। इन्हीं के विषय में यहां प्रश्न किया गया है। व्यवहार में ऐसा मालूम होता है कि जीव
जब गर्भ में जाता है, तो उसके इन्द्रियां नहीं होतीं, वरन् पहले-पहले मांस का पिंड बनता है, फिर इन्द्रियां बनती हैं। गौतम स्वामी पूछते हैं कि व्यवहार में जैसा माना जाता है, वह ठीक है या इसमें और कोई भेद है?
गौतम के उत्तर में भगवान् ने फरमायाहे गौतम! किसी अपेक्षा से जीव इन्द्रिय-सहित गर्भ में आता है, और किसी अपेक्षा से इन्द्रिय रहित गर्भ में आता है। अर्थात् द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रिय रहित आता है और भाव-इन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रिय सहित आता है। गर्भ में आते समय जीव के द्रव्येन्द्रियां नहीं होती, भावेन्द्रियां होती हैं।
- भगवती सूत्र व्याख्यान २११