Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ न्यायालय में भी बोलता है। परन्तु उसके दोनों जगह के वचनों में अन्तर रहता है। उत्कृष्ट वचन उसीके कहे जा सकते हैं जो निष्पक्ष हो- मध्यस्थ हो। इसलिए प्रवचन का अर्थ आप्तवचन है। जिसके राग-द्वेष नष्ट हो गये हैं और जिसमें पूर्ण ज्ञान है, वही प्रवचन कर सकता है। जिसका जीवन-व्यवहार प्रवचन के रंग में रंगा हुआ है, जो प्रवचन के अनुसार ही व्यवहार करता है, उसीसे सुना हुआ प्रवचन विशेष प्रभावजनक होता है। इसी कारण भगवान ने 'तहारूवाणं समणाणं माहणाणं' कह कर यह बात स्पष्ट कर दी है। __ पापकर्मों से दूर रहने वाला आर्य कहलाता है। और आर्यों के आचार-विचार संबंधी वचन को प्रवचन कहते हैं। जिसके वचन में निर्दोषता हो और जो वचन सुनने वाले को पाप से हटाए, उस पुरुष के ऐसे वचन को मानना उचित है। इसके विरुद्ध ज्ञान के अभिमान से उद्दण्ड और शुद्ध जीवन व्यवहार से रीते बड़े से बड़े पंडित की पापवर्धक बात भी सुनना उचित नहीं। __ अब यह भी देखना उचित है कि पाप किसे कहना चाहिए? शास्त्रकारों ने पाप के अठारह भेद कर दिये हैं। इन अठारह पापों को भली-भांति समझ लेने से बहुत कुछ पापों से बचाव हो सकता है। इन अठारह पापों के अवान्तर भेद रूप पापों से बचना कदाचित् संभव न हो तो भी मूल अठारह पापों से बचने वाला भी आप्तवचन कहने का अधिकारी हो सकता है। अठारह पापों में पांच आस्रव मुख्य हैं। फिर, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषा और अठारहवां मिथ्यादर्शन शल्य है। मिथ्यात्व का अर्थ है-वस्तु को उल्टी मानना। अर्थात् धर्म को अधर्म, अधर्म को धर्म, जीव को अजीव, अजीव को जीव, साधु को असाधु और असाधु को साधु आदि मानना। इन अठारह पापों से बचा रहने वाला पुरुष आर्य कहलाता है और इन पापों से बचने के लिए उपदेश के जो वचन हैं, वह आर्य प्रवचन हैं। एक भी आर्य वचन गर्भ के बालक को सवेग और श्रद्धा में बलवान बना देता है। सच्चा आर्य पुरुष पाप से घृणा करता है, किन्तु पापी से घृणा नहीं करता। पापी से घृणा करना पाप को बढ़ाना है। अक्सर लोग पाप से घृणा नहीं करते, किन्तु पापी से घृणा करते हैं। कोई गोघाती अगर आपके सामने आ जाय तो आप उसे झिड़क कर कहेंगे-चल, हट, पापी दुष्ट! लेकिन ऐसा कहना पाप है या नहीं? मित्रों! अगर कोई ऐसा पापी आपके सामने आ जाय तो आपको सोचना चाहिए-'इसका भी आत्मा मेरे ही समान है, परन्तु यह पाप २३४ श्री जवाहर किरणावली 008098ARRAHARY किरणावला

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290