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बैठते हैं कि उनसे घृणा करो। लेकिन ऐसा अर्थ समझना भ्रम है। हमें सोचना चाहिए कि शास्त्रकारों ने संगति न करने का उपदेश क्यों दिया है ? शास्त्रकारों का कथन है कि आत्मा तो पापी की भी हमारे ही समान है, लेकिन अगर हमारे भीतर कमजोरी हुई तो उसका पाप हम में घुस जायगा। अतएव पाप से बचे रहने के लिए पापी की संगति मत करो। हां, अगर तुम अपने में पाप न आने देकर उस पापी का पाप मिटा सकते हो, जैसे डाक्टर रोगी का रोग अपने में न आने देकर मिटा देता है, तब तो पापी की संगति करके उसका पाप मिटाना अच्छा ही है। मगर इतनी दृढता तुम्हारे भीतर नहीं है तो पापी से असहकार करना अच्छा है।
शास्त्र में एक धर्मात्मा पिता की कथा आई है, जिसने अपने पुत्र के विरुद्ध चोरी की गवाही दी थी। तात्पर्य यह है कि पापी को उत्तेजन देना ठीक नहीं है और ऐसा करने के लिए कभी असहकार करना उचित हो जाता है परन्तु किसी भी दशा में पापी से घृणा करना उचित नहीं हो सकता।
कदाचित् मेरा कोई चेला धर्म न पाले तो उससे असहकार करने के सिवा और क्या उपाय है? ऐसा करने का अर्थ कोई फूट डालना समझे तो भले ही समझे, मगर यह फूट डालना नहीं है, यह तो धर्मपालन है। फूट उस अवस्था में समझी जा सकती है जब वह चेला अपने दोष का प्रायश्चित्त करके धर्मपालन स्वीकार करे और फिर भी हम उसे अपने साथ सम्मिलित न करें।
गौतम स्वामी के प्रश्न का जो उत्तर भगवान ने दिया है, उसके विषय में एक आशंका यह की जा सकती है कि गर्भ का बालक माता के कान से कैसे सुन सकता है? इसका समाधान यह है-एक आदमी, एक कमरे में बैठ कर कुछ बोलता है। कमरे की दो दीवारों में से एक में छेद है और दूसरी में नहीं है। तो जिस दीवार में छेद नहीं है, उसके दूसरी ओर बैठा हुआ आदमी शब्द नहीं सुन सकेगा, परन्तु जिस दीवार में छेद है, उसके दूसरी ओर बैठने वाला शब्द सुन लेगा। इसी प्रकार माता के कान में होकर नाड़ियों द्वारा गर्भ में भी शब्द पहुंचता है। इसके सिवा संकट के समय इन्द्रियों का वेग स्थिर और प्रबल होता है, इस कारण भी गर्भ का बालक बात सुन लेता है। उदाहरण के लिए कीड़ी की अपेक्षा आपके नाक के द्वारा विषय-ग्रहण करने की शक्ति अधिक है, फिर भी वस्तु की जितनी गंध कीड़ी को आती है, उतनी आपको नहीं आती। किसी जगह पड़ी हुई शक्कर की गंध चिऊंटी को तो आ जाती है, मगर आप को क्यों नहीं आती? चिऊंटी के आंख नहीं है और वह बिल में घुसी हुई है, फिर उसे यह खबर कैसे लग गई कि इस जगह शक्कर पड़ी २३६ श्री जवाहर किरणावली
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