Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 254
________________ बद्धानि प्रष्टानि, निधत्तानि, कृतानि, प्रस्थापितानि, अभिनिविष्टानि, अभिसमन्वा गतानि, उदीर्णानि, उपशान्तानि भवन्ति । ततो भवति दुरूपः दुर्वर्णः, दुरसः, दुःस्पर्शः, अनिष्टः, अकान्तः, अप्रियः, अशुभः, अमनोज्ञः, अमनोयः, हीनस्वरः, दीनस्वरः, अनिष्टस्वरः, अकान्तस्वरः, अप्रियस्वरः, अशुभस्वरः, अमनोज्ञस्वरः, अमनोस्वरः, प्रत्या जातश्चापि भवति । वर्णवध्यानि च तस्य कर्माणि नो बद्धानि, प्रशस्तं ज्ञातव्यं यावत् आदेयवचनः प्रत्या जातश्चापि भवति । तदेवं भगवन्! तदेवं भगवन् ! इति । मूलार्थ प्रश्न- भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव चित्त होता है? या करवट वाला होता है? आम के समान कुबड़ा होता है? खड़ा होता है? बैठा होता है? या पड़ा होता है? तथा जब माता सो रही हो तो सोता होता है? जब माता जागती हो तो जागता है? माता के सुखी होने पर सुखी होता है ? और माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है? उत्तर I र - हे गौतम! हां, गर्भ में रहा हुआ जीव यावत् जब माता दुःखी हो तो दुःखी होता है। अब, वह गर्भ अगर मस्तक द्वारा या पैरों द्वारा बाहर आवे तो ठीक तरह आता है, अगर आड़ा होकर आवे तो मर जाता है । और उस जीव के कर्म यदि अशुभ रूप में बंधे हों, स्पृष्ट हों, निधत्त हों, कृत हों, प्रस्थापित हों, अभिनिविष्ट हों, अभिसमन्वागत हों, उदीर्ण हों, और उपशान्त न हों, तो वह जीव कुरूप, खराब वर्णमाला, खराब गंध वाला, खराब रस वाला, खराब स्पर्श वाला, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनाम ( जिस का स्मरण भी खराब लगे) हीन स्वर वाला, दीन स्वर वाला, अनिष्ट स्वर वाला, अकान्त स्वर वाला, अप्रिय स्वर वाला, अशुभ स्वर वाला, अमनोज्ञ स्वर वाला, अमनाम स्वर वाला, अनादेय वचन (जिस की बात कोई न माने) हो और यदि उस जीव के कर्म अशुभ रूप में न बंधे हों तो सब प्रशस्त समझना, यावत् वह जीव आदेय वचन वाला होता है । 'भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है!' गौतम स्वामी ऐसा कह कर विचरते हैं । व्याख्यान गौतम स्वामी ने भगवान् से गर्भ के जीव के विषय में स्वर्ग-नरक संबंधी बात पूछी। आत्मा का स्वर्ग-नरक आदि से प्रगाढ संबंध है, फिर भी स्वर्ग नरक तो दूर रहा आत्मा को अपने ही संबंध की बात ठीक तरह समझ में नहीं आती। अनेक ऐसे गूढ विषय हैं जो साधारण समझ वालों की समझ भगवती सूत्र व्याख्यान २४१

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