Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 241
________________ परन्तु साथ ही यह भी सोचता था कि संसार-कर्त्तव्य निभाना पड़ रहा है। जो इस हिंसा से मुक्त हो जाता है वही धन्य है। इस प्रकार की शुभ भावना से वह स्वर्ग में गया। आशय यह है कि तीव्र क्रोधादि ही नरक के कारण है। अनन्तानुबन्धी क्रोध के बिना नरक गति नहीं होती। इसलिए नरक का असली कारण क्रोध आदि है। आरंभ क्रोध का सहायक है। आरंभ से क्रोध बढ़ता है। परिग्रह लोभ रूप है ही। __अब यह भी प्रश्न होता उठता है कि गर्भ के बालक में इतना सब कुछ करने की शक्ति हो सकती है, यह बात मानने में नहीं आती। इसका समाधान यह है कि जिन्होंने यह बात लिखी है, उन ज्ञानियों में क्रोधादिक तो था ही नहीं, जिससे प्रेरित होकर वह असत्य या अतिशयोक्तिपूर्ण लिखते। अतएव महात्मा पुरुषों की बात में संदेह करने का कोई कारण नहीं है। शास्त्र की बात भक्ति से माननी चाहिए। छोटे बालक में भी विचार-गंभीरता होती है, यह बात इतिहास से भी मालूम हो जाती है। इतिहास की बात है कि जयशिखर का लड़का वनराज चावड़ा पाटन का राजा था। वनराज बड़ा पराक्रमी था। उसके पराक्रम को देखकर सारा राजपूताना दंग था। उसका पराक्रम देख कर मारवाड़ के लोगों ने विचार किया कि अपने देश में भी वनराज सरीखा वीर उत्पन्न हो तो देश को बड़ा लाभ होगा। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए मारवाड़ी लोगों ने अपने यहां के भाटों से कहा-किसी भी प्रकार वनराज को अपने यहां ले आओ। यहां किसी कन्या से विवाह कर देंगे और उनकी संतान होगी वह वनराज सरीखी वीर होगी। भाट जयशिखर के समीप पहुंचे। उन्होंने मुक्त कंठ से जय शिखर की विरदावली का बखान किया। जयशिखर ने प्रसन्न होकर भाटों से इच्छानुसार मांगने के लिए कहा। भाटों ने जयशिखर से वचन लिया कि वह जो मांगेंगे, वही उन्हें मिलेगा। जयशिखर ने वचन दे दिया। तब भाटों ने कहा कृपा करके मारवाड़ पधारें। थोड़े दिनों के लिए अपना राज-पाट कर्मचारियों के सुपुर्द कर दें। जयशिखर बड़े असमंजस में पड़ा। तुम लोगों ने यह क्या मांगा है! भाटों ने कहा-आपने मांगने की छुट्टी दी थी सो हमें जो अच्छा लगा सो मांग लिया। अब आप कृपा करके मारवाड़ पधारिये। आखिर जयशिखर अपना राज्य सरदारों को सौंपकर भाटों के साथ मारवाड़ की ओर रवाना हुआ। रास्ते में जयशिखर ने पूछा-मैं चल तो रहा ही हूं, परन्तु यह तो बताओ कि तुम लोग किस उद्देश्य से मुझे लिए जा रहे हो? २२८ श्री जवाहर किरणावली -

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