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करता है। उसे इनकी कांक्षा और पिपासा है। उसका अनुगत चित्त भी ऐसा ही बना है। उसका मन भी ऐसा ही और वृत्ति भी ऐसी ही है। उसका अध्यवसाय भी ऐसा ही बना हुआ है और उसी अर्थ में अर्पित हो गया है। अतएव उसकी भावना यही रहती है कि सामने वालों को मार डालूं और राज्य बचा लूं।
__ इस प्रकार वह गर्भ का जीव लड़ता-लड़ता जब अपनी वैक्रिय लब्धि को समेटने जाता है, तब छोटी शक्ति होने से उससे समेटा नहीं जाता और इस समेटने में वह मर भी जाता है। इस अवस्था में मरने से वह नरक में चला जाता है।
भगवान् की कही हुई यह बात प्रत्यक्षगम्य नहीं है । हम इन्द्रिय से यह बात नहीं देख सकते । इसलिए इस बात पर विश्वास कराने के लिए इतिहास का एक प्रमाण दिया जाता है ।
यहां यह कहा जा सकता है कि लड़ाई क्या नरक का कारण है ? इसका उत्तर यह है कि शस्त्र की लड़ाई है तो अनादि से, मगर हिंसा, असत्य की लड़ाई अलग है और अहिंसा, सत्य की लड़ाई अलग है। शास्त्र यह नहीं कहता कि शास्त्रों की प्रत्येक लड़ाई नरक का कारण है। शास्त्र की लड़ाई में भी अपराधी-निरपराधी का भेद है। लड़ाई कौरवों ने भी की थी और पाण्डवों ने भी की थी। सेना और शस्त्र आदि दोनों तरफ थे, परन्तु शास्त्र कहता है-पाण्डवों का पक्ष सत्य और सात्विकता का था और कौरवों का पक्ष असत्य एवं राजस था। मतलब यह है कि शस्त्र की प्रत्येक लड़ाई से नरक ही होता है, यह बात नहीं कही जा सकती।
इस बात पर यह शंका उठाई जा सकती है कि अगर शस्त्र की प्रत्येक लड़ाई नरक का कारण नहीं तो फिर जब बैरी चढ कर आया था और उससे वह गर्भ का बालक लड़ा तो उसे नरक क्यों जाना पड़ा? शास्त्र इस का उत्तर यह देता है कि किसी का पक्ष भले ही सत्य हो, लेकिन अत्यन्त तीव्र लालसा के कारण वह सत्य पक्ष भी असत्य बन जाता है। नरक का कारण अत्यन्त आसक्ति है। अत्यन्त आसक्ति न होने पर, सिर्फ शस्त्र की लड़ाई के कारण नरक में जाना ही पड़े, ऐसा कोई नियम नहीं है।
चेड़ा और कोणिक – दोनों ने शस्त्र संग्राम किया था। कोणिक ने भी मनुष्यों को मारा था और चेड़ा ने भी। फिर भी चेड़ा बारहवें देवलोक में और कोणिक नरक में गया। इस गति भेद का क्या कारण है? इस भेद का कारण यही है कि चेड़ा लड़ाई की हिंसा को हिंसा ही जानता-मानता था,
- भगवती सूत्र व्याख्यान २२७