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गर्भ का बालक लड़ाई करता है और क्रूर अध्यवसाय के कारण मर कर नरक में जाता है। जब आप इतिहास की बात पर विश्वास करते हैं तब सिद्धान्त की बात पर क्यों विश्वास नहीं करते?
नास्तिक लोगों का कथन है कि माता-पिता के रज-वीर्य से ही बालक उत्पन्न होता है और जब रज-वीर्य के संस्कार नष्ट होते हैं तब शरीर भी नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, उनके मत के अनुसार शरीर के साथ शरीरवान् (चैतन्य आत्मा) भी नष्ट हो जाता है। लेकिन आगम से विदित होता है कि गर्भ का बालक स्वर्ग या नरक भी प्राप्त कर सकता है, तो उस बालक को केवल माता-पिता का रज-वीर्य ही कैसे माना जा सकता है? उस गर्भस्थ बालक में आत्मा की अद्भुत शक्ति है। आत्मा के तेज को और उसकी शक्ति को समझना सरल बात नहीं है। उसे न समझने के कारण ही नास्तिकता आती है और भौतिक पदार्थ पर ही सारा विश्वास केन्द्रित हो जाता है । यह वास्तव में समझ की कमजोरी है ।
एक ही आत्मा नरक में भी जा सकता है और स्वर्ग में भी जाने की शक्ति रखता है। दोनों प्रकार की शक्ति मूल में एक ही है, उसका उपयोग भिन्न-भिन्न तरह से होता है। किसी शस्त्र से आत्मरक्षा भी हो सकती है और आत्महत्या भी हो सकती है
यही दर्शाने के लिए गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन्! गर्भ में रहता हुआ जीव देवलोक में भी चला जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया- हां, गौतम ! चला जाता है। अर्थात् कोई जाता है, कोई नहीं जाता। तब गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् ! ऐसा क्यों? भगवन् उत्तर देते हैं- हे गौतम! जैसा कारण होता है, वैसा कार्य होता है। जीव में स्वर्ग-नरक दोनों प्राप्त करने की शक्ति है। वह जैसी सामग्री जुटाता है, वैसी ही गति पाता है । विशिष्ट सत्वशाली जीव ही गर्भ से स्वर्ग या नरक जा सकता है । तोगुणी प्रकृति वाला जीव स्वर्ग जाता है और तमोगुणी प्रकृति वाला नरक
ता है। गौतम ! वह किसी महान् राजा का वीर्य संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, जब माता के गर्भ में होता है, उस समय उसकी माता तथा रूप श्रमण माहन से धर्म का व्याख्यान सुनती है। उसी प्रकार गर्भ का बालक भी सुनता है, जैसे सेना लेकर चढाई होने की बात सुन सकता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि श्रमण और माहन के साथ 'तथारूप विशेषण क्यों लगाया गया है ? 'तथारूप' विशेषण यह बात बतलाता है कि जैसा पुरुष है - जिसकी जिस रूप में प्रसिद्धि है, उसमें गुण भी उसी २३० श्री जवाहर किरणावली