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(1) भयंकर वस्तु का विचार आने से (2) शस्त्र आदि निमित्त से (3) विषैले पदार्थों के आहार से या आहार के दीर्घकालीन निरोध से (4) शरीरिक वेदना से (5) गड़हे में गिरने आदि से (6) सर्प आदि के दंश-से और (7) श्वासोच्छवास की रुकावट से।
ठाणांगसूत्र के टीकाकार स्वयं एक प्रश्न उठाते हैं कि आयु का कम हो जाना या अधिक समय तक चलना, यह तो अनियमितता और अनहोनी बात होगी! इसका समाधान भी स्वयं वे ही करते हैं कि कोई अनहोनी बात नहीं है। आयु दो प्रकार से खूटता है-एक तो कायदे से, दूसरे बेकायदे। उदाहरणार्थ-सौ हाथ लम्बी रस्सी को अगर एक सिरे से जलाया जाय तो वह बहुत देर में जलेगी, अगर उसे समेट कर जलाया जाय तो वह बहुत जल्दी जल जायगी। यही बात आयुकर्म की भी है।
आयु जल्दी और देर में किस प्रकार समाप्त होती है, यह प्रत्यक्ष प्रमाण से भी सिद्ध किया जा सकता है। भारतीयों और अमेरिकनों के औसत आयु में भेद क्यों है? सुना है कि अमेरिका-निवासियों की औसत आयु साठ-सतर वर्ष के लगभग है, और भारतीयों की चौबीस वर्ष के लगभग ही। इस प्रकार भारतीय अल्प अवस्था में ही क्यों मर जाते हैं? इस का कारण यही है कि भारतीयों का रहन-सहन अनियमित और भोजन पान जीवनवर्धक नहीं है, जब कि अमेरिकनों का ऐसा है। आप अपना जीवन किस प्रकार बिता रहे हैं, यह आप नहीं जानते।
अभिप्राय यह है कि आयु रस्सी, तेल या कपड़े के समान है। उसका उपयोग सावधानी से करोगे तो अधिक दिन टिकेगी, नहीं तो बीच में ही नष्ट हो जायगी। सावधानी से उपयोग करते हुए भी किसी अन्य कारण से अगर बीच ही में मृत्यु आ जावे तो उससे भय मत करो। मरने से डरना बुद्धिमानी नहीं है और मरने से न डर कर सावधानी न रखना भी बुद्धिमानी नहीं है। असल में जीवन-मरण के विषय में मध्यस्थ भाव रखने से ही शान्ति मिलती
प्रारम्भ की चीज का संस्कार अन्त तक रहता है, यह किसे नहीं मालूम है? आम की गुठली से झाड़ पैदा होता है, जिस में मोटा ताजा और बड़ी-बड़ी डालियां होती हैं। लेकिन उस बड़े झाड़ में भी अंकुर और बीज का धर्म रहता ही है। वह तभी जाता है, जब झाड़ समूल नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार माता-पिता की धातुओं का जो आहार गर्भ में लिया गया है, वह उम्र भर रहता है। उस आहार का संस्कार छूटा और प्राण गया। २१८ श्री जवाहर किरणावली -
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