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अब यह भी देख लेना चाहिए कि द्रव्येन्द्रिय और भावेंद्रिय किसे कहते हैं ? तत्वार्थ सूत्र के अ.2 सू-17 'निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रिय निर्वृति और उपकरण, यह द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं। जो भाव को ग्रहण करे उसे द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। द्रव्येन्द्रिय पौद्गलिक रचना विशेष है। द्रव्येन्द्रिय में एक उपकरण है, एक निर्वृति है। कान की अमुक आकृति निर्वृति कहलाती है। उसका सहायक उपकरण कहलाता है। किसी के कान एक प्रकार के और किसी के दूसरे प्रकार के होते हैं। छोटे और बड़े दोनों प्रकार के कानों से सुनाई देता है किन्तु कान की बनावट में प्राकृतिक अंतर होता है। लम्बे और मांस से भरे कानों की शक्ति और प्रकार होती है तथा छोटे तथा मांसहीन कानों का कुछ
और ही प्रकार का सामर्थ्य होता है। बहरे आदमी के यह ऊपरी कान बने रहते हैं मगर सुनने की शक्ति उसमें नहीं होती। उपकरण कान वह है, जिनके बिना सुनना असंभव है। वह उपकरण और निर्वृति-दोनों ही द्रव्येन्द्रिय हैं। जीव गर्भ में द्रव्येन्द्रिय की अपेक्षा इन्द्रिय रहित ही जाता है, परन्तु भावेन्द्रिय लेकर आता
है।
भावेन्द्रिय के भी दो भेद हैं 'लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियं' त.स. 18 लब्धि और उपयोग । लब्धि का अर्थ है-शक्ति जिसके द्वारा आत्मा, शब्द का ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होता है, उसे लब्धि-इन्द्रिय कहते हैं। मगर लब्धि होने पर भी अगर उपयोग न हो तो काम नहीं चल सकता। उपयोग के अभाव में सुनना न सुनना बराबर है। योग्यता अर्थात् लब्धि तो हो, मगर उपयोग न हो तो लब्धि बेकार है। लब्धि के होते हुए भी उपयोग लगाने से ही काम चलता है। लब्धि का अर्थ ग्रहण करने का सामर्थ्य और उपयोग का अर्थ ग्रहण का व्यापार है। इन दोनों भावेन्द्रियों के साथ जीव गर्भ में आता
जीव गर्भ में भावेन्द्रिय सहित आता है, इस बात का विश्वास कराने के लिए उसका कारण भी बतलाते हैं। अगर द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय-दोनों को ही गर्भ में उत्पन्न माना जाय तो फिर आत्मा भी पहले का न रहेगा। अगर आत्मा पहले का और परलोक से गर्भ में आया हुआ माना जाय तो फिर यह भी मानना होगा कि वह परलोक से कुछ लेकर आता है। अगर साथ में कुछ न लाया तब तो जन्म लेने वाले सभी बालक एक ही तरह के होने चाहिएं, मगर वस्तुस्थिति इससे भिन्न प्रतीत होती है। एक ही माता के गर्भ से उत्पन्न होने वाले बेटों में कोई अंधा और कोई सूझता होता है, कोई बहिरा और कोई सुनने वाला होता है। आत्मा गर्भ में आते समय यदि कुछ भी साथ में न लाया होता २१२ श्री जवाहर किरणावली