________________
राग-द्वेष नहीं फैलाना था, फिर वे असत्य बात क्यों कहते? जिनका राग-द्वेष नष्ट हो गया है और जो ज्ञानी हैं, उनकी बात पर विश्वास करना ही विवेकशीलता एवं बुद्धिमत्ता है ।
आप कह सकते हैं, नारकी जीव नरक में चाहे सर्व से सर्व आश्रित करके उत्पन्न हो या देश से देश का आश्रय करके उत्पन्न हो, इससे हमें क्या प्रयोजन है? इस संबंध में ज्ञानियों का कथन यह है कि जिसकी बुद्धि संकीर्ण है, वे भले ही छोटी बातों से संतोष कर लें, परन्तु समदर्शी तो सभी पर विचार करते हैं। साधारण लोगों को स्वर्ग की बात अच्छी लगती है और नरक की बात अच्छी नहीं लगती, लेकिन ज्ञानी नारकी जीवों से लेकर वैमानिकों तक को समभाव की दृष्टि से देखते हैं। उन्हें किसी पर विषमभाव नहीं है ।
एक भोजन थाली में होता है - जो रुचिकर और स्वादु प्रतीत होता है, और दूसरा भोजन पेट में होता है, जो पच रहा है। पेट में जो भोजन पच रहा है, उसकी स्थिति कैसी होती है? यह बात वमन (कै) देखकर आपने जानी होगी। यानी उसे देख कर घृणा व अरुचि पैदा होती है या नहीं? अगर आपसे पूछा जाय कि थाली के भोजन में क्या उपयोगिता है? और थाली का भोजन रुचिकर और पेट का भोजन घृणाजनक क्यों है? आप इस प्रश्न का क्या उत्तर देंगे? अगर थाली का भोजन भूख न मिटावे और पचे नहीं तो कौन उसे अच्छा कहेगा? इससे प्रकट है कि भोजन की अच्छाई अपनी पाचनशक्ति पर निर्भर है। अगर आप यह सोचने लगें कि पेट में गया हुआ भोजन खराब हो जाता है और इसलिए उसे पेट में डालने से क्या लाभ है? ऐसा सोचकर भोजन न करें तो शक्ति कहां से आयेगी ? अगर थाली का भोजन पेट में पहुंच कर भेली के जैसा बना रहे-बदले नहीं तो भयंकर उत्पात मच जाएगा ।
आप थाली के भोजन से प्रीति और पचते हुए भोजन से घृणा करते हैं, मगर ज्ञानी कहते हैं कि आप भ्रम में हैं। जो चीज महत्व की है और जिसके कारण ही भोजन का महत्व है, उससे तुम घृणा करते हो। इस प्रकार जब प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली बात के विषय में भी तुम्हारी और ज्ञानियों की दृष्टि में अन्तर है तो स्वर्ग नरक आदि के विषय में तुम्हारी दृष्टि भिन्न प्रकार की हो, यह संभव है। मगर ज्ञानी की विचारणा ही सही और हितावह होती है। आपको नरक के नाम से इतनी घृणा है कि भोजन करते समय आप नरक का नाम भी सुनना नहीं चाहते किन्तु ज्ञानियों के भाव में स्वर्ग-नरक समान है। जिन ज्ञानियों ने मोह को इस प्रकार जीत लिया है, उन्हें नमस्कार करना चाहिए और उनकी बात पर विश्वास करना चाहिए ।
१६० श्री जवाहर किरणावली