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लिए कोई काम न रहे तो इसे खंभा बता देना चाहिए, जिस पर वह चढ़ता-उतरता रहे। वह खंभा कौन-सा है ? भगवत् भजन का ।
तुम सुमरन विन इण कलियुग में, अवर न को आधारो । मैं वारी जाऊं तो सुमरन पर, दिन दिन प्रीत बधारो ।। पदम प्रभु पावन नाम तिहारो ।।
इस प्रार्थना पर ध्यान दो। अगर तुम अपने आत्मा को चक्कर में डालोगे तो कभी अन्त नहीं आएगा। अतएव इसे काम बताकर संतोष करो । जब इसे कोई काम नहीं होता है तो यह बुरे रास्ते जाकर चक्कर में फंस जाता है । लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति न होने के कारण नास्तिक बन जाते हैं। विवेकानन्दजी ने लिखा है- यूरोप के बहुत से लोग केवल मानसिक दुःखों से छुटकारा पाने के लिए मदिरा पीना आरम्भ कर देते हैं। मगर यह उल्टा इलाज है। यदि वे मन को ऊपर बतलाये हुए ईश्वरभक्ति रूपी खंभे पर चढावें - उतारें तो मानसिक दुःख समीप ही नहीं आ सकता। मगर सिद्धी का शरण लिए बिना उन्हें यह युक्ति बतलावे कौन ? मन जब इस काम में लग जायगा तो फुर्सत नहीं पाएगा और न हमें खायेगा । भगवद्-भजन से अनेक लाभ होते हैं। सबसे प्रथम लाभ तो यह है कि भगवान् का भजन करने से भक्त को दिव्य प्रसन्नता का अनुभव होता है। जो भजन करना जानता है, वह कभी रोता नहीं। बड़े से बड़ा कष्ट आ पड़ने पर भी वह समान रूप से प्रसन्न रहता है। मगर लोगों की गति-मति विपरीत हो रही है। प्रसन्नता का इतना सुन्दर साधन रहते हुए भी वे मदिरापान द्वारा प्रसन्नता का अनुभव करने का प्रयत्न करते हैं ।
भजन करने से मन रूपी भूत हमारे वश में हो जाता है । मन सारी शक्तियों का खजाना है। मन ही स्वर्ग, मोक्ष, बंध, नरक आदि का कारण है । तुकाराम ने कहा है- तुम मन को प्रसन्न करो तो वह तुम्हारे लिए सब कुछ कर सकता है। लेकिन उसे ऐसा प्रसन्न करो कि फिर कभी अप्रसन्न न हो । छोटी-मोटी चीजें देकर उसे कुछ देर के लिए बहला लेना ही उसे प्रसन्न करना नहीं है। ऐसी प्रसन्नता क्षणिक है और उसके पश्चात फिर अप्रसन्नता का उदय हो जाता है। यह प्रसन्नता नहीं है बल्कि उसे पागल बना देना है मन को ऐसी चीज दो जिससे वह स्थायी प्रसन्नता प्राप्त कर सके। उचित रूप
प्रसन्न होगा तो वह तुम्हें सब कुछ दे सकेगा । स्थायी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए भगवद्-भजन ही सर्वोतम साधन है। ईश्वर के नाम-स्मरण से भ्रान्ति दूर होगी। नाम भले ही कोई भी हो, मगर हृदय को छूने वाला चाहिए । अनन्त भगवती सूत्र व्याख्यान २०५