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किसान ने घबराकर कहा-भाई, थक गये होओगे! अब कुछ देर विश्राम कर लो! फिर काम बतला दूंगा।
भूत-अगर कोई कम न बतलाया तो मैं अपने नियम के अनुसार अभी तुम्हें खा जाऊंगा।
किसान सकपकाया। सोचने लगा-इसकी अपेक्षा तो मैं पहले ही अच्छा था। उस समय यह बला तो नहीं थी। अब इससे किस प्रकार पिंड छुड़ाया जाय ! क्यों न उन्हीं सिद्ध पुरुष की सेवा में जाऊं और उन्हीं से अपनी रक्षा की भिक्षा मांगू।
___उसने भूत से कहा-तू मेरे पीछे-पीछे चल, अभी यहीं काम बतलाता हूं। इस प्रकार दोनों सिद्ध पुरुष के पास पहुंच कर सिद्ध पुरुषं से किसान ने कहा-महाराज! आप अपना भूत संभालिए! बाज आये इससे! कहां तक इसे काम बताऊं? अगर कभी न बतला पाया तो मुझे खा जायगा? ऐसे भूत की मुझे आवश्यकता नहीं। न जाने कब मुझे खा जाय?
सिद्ध ने किसान को सान्त्वना देते हुए कहा-भाई, डरो मत। इसे एक खंभा बनाने का काम बतलाओ। किसान ने सिद्ध के कथनानुसार भूत को खंभा बनाने का काम बता दिया। भूत ने पल भर में खंभा तैयार कर दिया। तब सिद्ध ने कहा-अब इसे कह दो कि जब मैं जो काम बताऊं, तब वह काम करना। शेष समय में इस खंभे पर चढ़ते-उतरते रहना। भूत चढ़ने-उतरने लगा।
इस चढ़ने उतरने से भूत हैरान हो गया। उसने कहा-माफ करो भाई, मैं तुम्हारे बुलाने पर आ जाया करूंगा। शेष समय में, कार्य न होगा तो तुम्हें नहीं खाऊंगा।
किसान भी यही चाहता था। उसने प्रसन्नतापूर्वक भूत की बात मान ली। भूत अपना पिंड छुड़ाकर भागा और किसान ने अपना पिंड छूटा जान संतोष की सांस ली और अपने घर आ गया।
यह उदाहरण सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं है। इसमें अनेक तत्व भरे हैं। जैसे किसान ने भूत पैदा किया, उसी प्रकार आत्मा ने मन पैदा किया है। भूत काम में लगे रहने पर शांत रहता है और खाली होने पर खाने दौड़ता है। इसी प्रकार मन भी निरन्तर क्रियाशील रहना चाहता है। खाली रहना उसे पसंद नहीं, उसे कोई न कोई चटपटी बात सदैव चाहिए। जब यह निकम्मा रहता है तो हमें खाने दौड़ता है और इतना खाता है कि पागल बनाकर छोड़ता है। यह भूत कोई साधारण नहीं है। सभी के पीछे पड़ा हुआ है। जब इसके २०४ श्री जवाहर किरणावली