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यहां ऊंचे लोक का अभिप्राय वैताढ्यपर्वत आदि है, अधोलोक का अर्थ नीचे के ग्राम आदि और तिर्छ लोक का अर्थ तो तिर्खा लोक है ही।
___ गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! जिस प्रकार बादर अप्काय बूंद-बूंद संग्रह होकर तालाब आदि में भरता है, क्या उसी प्रकार सूक्ष्म स्नेहकाय भी संग्रह होता है! इस का उत्तर भगवान् ने दिया हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् ऐसी बात नहीं है। गौतम स्वामी पूछते हैं क्यों भगवन्! ऐसा क्यों नहीं होता? भगवन् फर्माते हैं-गौतम, सूक्ष्म स्नेहकाय ज्यों ही पड़ता है कि उसी समय सूख जाता है। शीघ्र ही उसका विध्वंस हो जाता है।
गौतम स्वामी ने 'सेवं भंते! सेवं भते!' कहा। अर्थात् हे प्रभो! आपका कथन सत्य है तथ्य है।
प्रथम शतक छट्ठा उद्देशक पूर्ण
- भगवती सूत्र व्याख्यान १८५