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नरक के जीवों के प्रश्न
प्रथम शतक सप्तम उद्देशक विषय-प्रवेश
भगवती सूत्र के प्रथम शतक का छठा उद्देशक समाप्त हुआ। अब सातवां आरंभ होता है। छठे उद्देशक की समाप्ति और सातवें के प्रारंभ का पारस्परिक संबंध बतलाते हुए टीकाकार कहते हैं कि छठे उद्देशक के अन्त में सूक्ष्म अप्काय का शीघ्र नष्ट होना कहा है। नाश का उल्टा उत्पाद है। अतः सातवें उद्देशक में उत्पाद की बात कहते हैं अथवा छठे उद्देशक में लोकस्थिति का निरूपण किया था और इस सातवें उद्देशक में भी वही बात बतलाई जाती है अथवा शतक के प्रारम्भ में जो संग्रह गाथा कही थी, उसमें सातवें उद्देशक में नरक का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की गई थी, अतः यहां नरक का वर्णन किया जाता है।
मूलपाठप्रश्न-नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे किं देशेणं-देसं उववज्जइ, देसेणं सव्वं उववज्जइ. सव्वेणं-देशं उववज्जइ सव्वेणं सव्वं उववज्जइ?
उत्तर-गोयमा! नो देशेणं देसं उववज्जइ, नो देसेणं सव्वं उववज्जइ, नो सव्वेणं देसं उववज्जइ, सव्वेणं सव्वं उववज्जइ; जहा नेरइए, एवं जाव-वेमाणिए। .. प्रश्न-नेरइया णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे किं देसेणं देसं आहारेइ, देसेणं सव्वं आहारेइ, सव्वेण देसं आहारेइ, सव्वेणं सव्वं आहारेइ? १५६ श्री जवाहर किरणावली