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प्रश्न-भगवन्! पहले अंडा और फिर मुर्गी है? या पहले मुर्गी और फिर अंडा है?
'हे रोह! वह अंडा कहां से आया?' 'भगवन्! वह मुर्गी से हुआ।' 'हे रोह! वह मुर्गी कहां से आई?' 'भगवन्! मुर्गी अंडे से हुई।
उत्तर-इसी प्रकार हे रोह! मुर्गी और अंडा पहले भी है और पीछे भी है, यह शाश्वत भाव है। रोह! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है।
प्रश्न-भगवन्! पहले लोकान्त और फिर अलोकान्त है? अथवा पहले अलोकान्त और फिर लोकान्त है?
उत्तर-रोह! लोकान्त और अलोकान्त, इन दोनों में यावत्-कोई क्रम नहीं है।
प्रश्न-भगवन्! पहले लोकान्त है और फिर सातवां अवकाशान्तर है? इत्यादि प्रश्न करना।
उत्तर - हे रोह! लोकान्त और सातवां अवकाशान्तर, यह दोनों पहले भी हैं, पीछे भी इस प्रकार यावत्-रोह! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है। इसी प्रकार लोकान्त, सातवां तनुवात, इसी प्रकार घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी। इस प्रकार प्रत्येक के साथ लोकान्त को निम्नलिखित स्थानों के साथ जोड़ना चाहिए।
___ अवकाशान्तर, वात घनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्ष (क्षेत्र), नारकी आदि जीव, चौबीस दण्डक अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्यप्रदेश और पर्याय तथा क्या काल पहले है और लोकान्त बाद में है?
प्रश्न-भगवन्! लोकान्त पहले और सर्वाद्धा बाद में है?
उत्तर--रोह! जैसे लोकान्त के साथ सब स्थानों का संयोग किया, उसी प्रकार इस सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। और इसी प्रकार इन स्थानों को अलोकान्त के साथ भी जोड़ना चाहिए।
प्रश्न-भगवन्! पहले सातवां अवकाशान्तर और फिर सातवां तनुवात
उत्तर-रोह! इसी प्रकार सातवें अवकाशान्तर को पूर्वोक्त सब के साथ जोड़ना चाहिए, इसी प्रकार सर्वाद्धा तक समझना चाहिए। प्रश्न-भगवन्! पहले सातवां तनुवात और फिर सातवां घनवात है?
- भगवती सूत्र व्याख्यान १३७