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परीक्षा करने वाला? सब समझदार यही स्वीकार करेंगे कि दृश्य की अपेक्षा दृष्टा बड़ा है। मगर आज हम इससे विपरीत होता देखते हैं। आज लोग व्यवहार में दृष्टा को छोटा और दृश्य को बड़ा मान बैठे हैं। उन्हें दृष्टा की कोई चिन्ता नहीं, चिन्ता है केवल दृश्य की। आत्मतत्व का ध्यान भूल कर लोग जड़ पदार्थों के लिए ही व्याकुल हो रहे हैं। इसका कारण अज्ञान है। अज्ञान के कारण लोगों ने असली तत्व को बिसार दिया है और दृश्य पर अपने आपको न्यौछावर कर रहे हैं।
मन, भाषा, इन्द्रियां तथा अन्य पदार्थ दृश्य हैं, और आत्मा इन सब का दृष्टा है। शरीर भी आत्मा का साधन और दृश्य है। यही कारण है कि शरीर का नाश होने पर भी ज्ञानीजन दुःख का अनुभव नहीं करते। इसके विरुद्ध आत्मा के प्रतिकूल आत्मा को कर्मबंधन में डालने वाला कोई भी कार्य उन्हें सहन नहीं होता। अज्ञानी शरीर को ही सब कुछ समझता है और ज्ञानी के लिए आत्मा सर्वस्व है।
आप कह सकते हैं कि शरीर की चिन्ता क्यों न की जाय? क्या हम पशु हैं? जो शरीर की या अन्य पदार्थों की चिन्ता न करें? हम मनुष्य, पशुओं की तरह नहीं रहना चाहते। हमारे घर-द्वार हैं, स्त्री, बाल-बच्चे हैं। इन सब की चिन्ता छुड़वा कर हमें पशुता की ओर ले जाना क्या उचित है ? मगर इस प्रकार की आशंका निर्मूल है। अगर पशुता की ओर ले जाने की इच्छा होती तो उपदेश देने की क्या आवश्यकता थी। बल्कि हम तो पाशविक जीवन से मनुष्य को ऊंचा उठाना चाहते हैं। मनुष्य को पशुता से बचाकर, सच्चा मनुष्य बनाकर देवत्व की ओर ले जाने के उद्देश्य से ही ज्ञानी उपदेश देते हैं। मनुष्य ऐसे-ऐसे काम करता है, जिन्हें करने में पशु भी लज्जित होता है। उन्हीं कार्यों से दूर रखने के लिए यह उपदेश दिया जाता है कि तुम वैसे कार्य मत करो, जिससे तुम्हारा अस्तित्व पशुओं से भी निम्न कोटि का बन जाय । ज्ञानी पुरुष कुटुम्बपालन का निषेध नहीं करते, मगर उससे भी महान् और पवित्र उद्देश्य की ओर इंगित करते हैं और कुटुम्ब के संबंध में मनुष्य ने जो क्षुद्र कल्पना बना ली है, संकीर्ण सीमा निर्धारित कर रखी है, उसे विशाल-विशालतर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
__मनुष्य में बुद्धि अवश्य है, किन्तु वह दृष्टा को भूलकर भ्रमवश दृश्य को ही सब कुछ मान बैठा है। अपने दृष्टापन को भूल कर दृश्य के लिए ही परेशान रहता है। वह अपनी गुरुता तो विसर गया है और तुच्छ वस्तुओं को अपने से अधिक मूल्यवान मान रहा है। एक कारीगर ने पुतली बनाई। पुतली १७२ श्री जवाहर किरणावली