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भूतकाल है, मगर वह वर्तमान में होकर ही गया है। जब प्रत्येक भूतकाल, एक दिन वर्तमान था, तो भूतकाल की आदि होनी चाहिए। अगर भूतकाल की आदि नहीं है तो क्या यह कहा जा सकता है कि भूतकाल कभी वर्तमान रूप में आया ही नहीं? वह वर्तमान हुए बिना ही सीधा भूतकाल हो गया? लेकिन यह सभी को मालूम है कि कल का दिन वर्तमान में था। इसी प्रकार वर्ष और सैकड़ों वर्ष वर्तमान में आकर के ही भूतकाल बने हैं। इसी प्रकार भविष्य काल में से निकल कर कुछ अंश वर्तमान होता जा रहा है और फिर वह वर्त्तमान, भूतकाल बनता जाता है, फिर भी भविष्य काल का कहीं अन्त नहीं है। वह ज्यों का त्यों अनन्त है। भविष्य की तरह भूतकाल भी अनन्त है। भूतकाल और भविष्यकाल-दोनों बराबर कहे गये हैं। जैसे हाथीदांत की बनी हुई बिना जोड़ की चूड़ी का मध्य, जहां उंगली रक्खो वहीं है। इसी प्रकार अगर वर्तमान को भूत में मिला लो तो भूतकाल और अगर उसे भविष्य में मिला लो तो भविष्यकाल भले ही बढ़ जाए, अन्यथा भूत और भविष्य दोनों बराबर हैं और दोनों ही अनन्त हैं। इसी प्रकार सिद्धि और संसार दोनों ही साथ हैं और दोनों ही अनादि हैं।
कई लोगों को यह आशंका है कि जब संसार से ही निकलकर जीव सिद्ध होते हैं तो कभी न कभी संसार खाली हो जायगा। इस भय के कारण लोगों ने यह मान्यता गढ़ ली है कि मुक्त जीव एक नियत अवधि तक ही मोक्ष में रहकर फिर संसार में लौट आता है। मगर यह कथन जैन शास्त्रों के अतिरिक्त गीता से भी बाधित है। गीता में कहा है:यद्गत्वा न निवर्तन्ते, तद्धाम परमं मम।
अर्थात्-जहां जाकर फिर न लोटना पड़े, वही मेरा धाम-मोक्ष है।
संसार के खाली हो जाने की आशंका निर्मूल है। भविष्यकाल, प्रतिक्षण, वर्तमान होकर भूतकाल में मिलता जाता है और भूतकाल फिर कभी भविष्यकाल नहीं बनता, तो क्या यह भय होता है कि कभी भविष्यकाल का अन्त हो जायगा?
'नहीं!' 'क्यों? 'इसलिए कि भविष्यकाल अनन्त है।'
इसी प्रकार संसार भी अनन्त है- संसारी प्राणी भी अनन्तानन्त हैं। रुपयों की थड़ी जमाते जाओ तो क्या कभी आकाश का अन्त आ जायेगा? रुपयों ने आकाश को घेरा अवश्य है, मगर आकाश अनन्त है, अतएव उसका
- भगवती सूत्र व्याख्यान १५१