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अन्य पदार्थों की सत्ता भी अवश्य प्रतीत होगी। इस संबंध में भी न्यायशास्त्र में विस्तृत विवेचना की गई है। विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए।
गीता में अश्वत्थ वृक्ष का आकार वैसा ही बतलाया है, जैसा जैन शास्त्रों में लोक का आकार-पुरुषाकार हैं। अश्वतथ वृक्ष का आकार देते हुए गीता में कहा है
अधश्चोर्ध्व प्रसृतास्तस्य, शाखा
न रूपमस्येह हे अर्जुन! यदि मुझ से संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष का रूप पूछो तो न इस वृक्ष की आदि है, न अन्त है अर्थात् वह अनादि है।
गीता भी संसार को अनादि कहती है और भगवती सूत्र भी अनादि कहता है, आधुनिक वैज्ञानिक भी यही कहते हैं। नास्तिक आत्मा का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करते, लेकिन कौन कह सकता है कि आगे चल कर आधुनिक विज्ञान ही आत्मा का अस्तित्व सावित नहीं करेगा? और आज भी आत्मा प्रमाणों से सिद्ध है।
भगवान् ने आजकल के विज्ञान से किसी बात को नहीं देखा था। उन्होंने अपने परिपूर्ण ज्ञान में देख कर ही जीव और अजीव को अनादि कहा है। यह भगवान् का बतलाया हुआ बीजमंत्र है।
____ अब रोह अनगार पूछते हैं-भगवान्! संसार और सिद्धि-यह दो पदार्थ हैं। इन दो से पहले कौन है? पहले सिद्धि है या संसार? अर्थात् सिद्धि में से संसार निकला या संसार में से सिद्धि निकली है?
यहां यदि कहा जाय कि संसार पहले है और संसार से निकल कर (जीव) सिद्ध होते हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि संसार पहले है और सिद्धि पीछे है। अर्थात् संसार पहले हुआ है। गीता भी कहती है कि इस अश्वत्थ रूप संसार का छेदन करके जो निवृत्त हो जाते हैं, वे चिदानन्द रूप होकर सिद्धिक्षेत्र में आनन्द का उपभोग करते हैं। इस कथन से भी यही सिद्ध होता है कि सिद्ध संसार से निकल कर हुए हैं, और संसार पहले है, सिद्धि बाद में है। लेकिन भगवान् ने फर्माया कि सिद्धि और संसार दोनो ही शाश्वत हैं। जब से संसार है, तभी से सिद्धि है, और जब से सिद्धि है, तभी से संसार है। सिद्ध हुए हैं संसार से ही, लेकिन संसार की आदि हो तो सिद्धि की भी आदि हो।
आज का दिन वर्तमान कहलाता है, गया दिन भूतकाल कहलाता है और आगामी दिन भविष्य काल कहलाता है। यद्यपि गया दिन, आज १५० श्री जवाहर किरणावली
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