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सिपाहियों के साथ पथिक राजा के पास गया। उसने विनय करते हुए कहा-हुजूर! आप मारना चाहें तो भले मारिये मगर मैंने आपको जानबूझ कर लकड़ी नहीं मारी।
राजा ने अपने साथ के खजांची से लेकर उसे एक खोवा (अंजुली) भर रुपये दिये। खजांची भौंचका रह गया। लकड़ी मारने का इतने रुपये इनाम ! अगर लोगों को यह बात मालूम होगी तो गजब हो जायगा। इसे अधिक सजा नहीं तो गफलत की सजा अवश्य मिलनी चाहिए। राजा ने कहा-कानून के अनुसार तुम्हारा कहना ठीक है लेकिन मैं कानून से उच्चतर नीति का अवलंबन करना चाहता हूं। मैं तुम्हारा जमा-खर्च करवा देता हूं। लिखो-एक गरीब ने बेर वृक्ष पर लकड़ी फैकी लकड़ी खाकर उस वृक्ष ने गरीब को बहुतेरे फल दिये। परन्तु लकड़ी राजा पर गिर पड़ी। वृक्ष राजा को चेतावनी देता है कि मैं भी गरीब को भूखा नहीं रहने देता, तो तूं राजा होकर के भी गरीब को भूखा कैसे रख सकता है? गरीब को भूखा रखने वाला राजा कैसा! इस चेतावनी के मिलने पर भी राजा अगर गरीब को भूखा रखता है तो उसका विरुद जाता है। इसलिए राजा ने गरीब को इनाम दिया।
इसे कहते हैं प्रकृति-भद्रता! यह भद्रता पोथियां पढ़ने से नहीं आती। प्रकृति के सान्निध्य में बसने वाले ही इसे प्राप्त करने का सोभाग्य पाते
रोह अनगार प्रकृति से भद्र होने के साथ प्रकृति से मृदु थे। मृदु का अर्थ है कोमल। जो पुरुष द्राक्ष की भांति बाहर-भीतर से कोमल होता है, उसे प्रकृति मृदु कहते हैं। मतलब होने पर मृदुता प्रकट करना और मतलब निकल जाने पर अपना असली रूप प्रकट करना मृदुता नहीं है। यह मायाचार है। प्रकृति की मृदुता का उदाहरण श्रीकृष्ण के चरित्र में भी दिखाई पड़ता है। जरा-जीर्ण बूढ़े की ईंट उठाना उनका प्राकृतिक मृदुता का प्रमाण है।
रोह अनगार प्रकृति से भद्र और मृदु थे, अतएव प्रकृति से विनीत भी थे। जो प्रकृति से भद्र और मृदु होगा वही विनयी भी होगा। इनमें आपस में कार्य कारण भाव सम्बन्ध है। विनय कार्य है और भद्रता एवं मृदुता उसका कारण है।
विनयति-निराकरोति अष्ट प्रकारं कर्म, इति विनयः । अर्थात् जिसके द्वारा आठ प्रकार के कर्म दूर किये जाते हैं, उसे विनय कहते हैं। जैसे कोमल मिट्टी या राख बर्तन को साफ कर देती है, उसी प्रकार विनय आत्मा को निर्मल बना देती है। शास्त्र में कहा है -
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8 888888888 भगवता सूत्र व्याख्यान १४"