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फिर यों तो कलाल भी कहता है कि शराब पिये बिना काम नहीं चलेगा। वेश्याएं भी कहती हैं कि अगर हम न होंगी तो समाज का काम कैसे चलेगा? अगर यह बातें ठीक मानी जाएं तो यह भी माना जा सकता है कि कपट सहित झूठ के बिना संसार-व्यवहार नहीं चल सकता ।
आप लोगों ने जिस सफेद झूठ के बोलने से अपने आपको होशियार मान रक्खा है, उसे एक मास के लिए ही त्याग कर देखो; और इस एक महीने की आमदनी से झूठ बोले हुए एक महीने की आमदनी मिलाकर देखो तो मालूम होगा कि झूठ बोले बिना काम चल सकता है या नहीं! यह तो आपकी आदत पड़ गई है कि झूठ बोले बिना आपको काम चलता नहीं दिखाई देता । मगर सत्य की ओर झुको तो झूठ की बुराई और सत्य की महिमा देखकर चकित हो जाओगे ।
कल्पना कीजिए, एक बड़ी और मोटी लकड़ी जमीन पर पड़ी है और दूसरी उतनी ही बड़ी जल में पड़ी है। जमीन पर पड़ी लकड़ी को घुमाने में कई लोगों की आवश्यकता होगी। लेकिन जल में पड़ी लकड़ी को घुमाने के लिए उतने आदमियों की आवश्यकता न होगी। उसे एक साधारण-सा बालक भी घुमा सकता है। क्योंकि उसे घुमाने में एक दूसरी शक्ति सहायक है। आप कहते हैं-असत्य के बिना काम नहीं चल सकता, लेकिन मेरा कथन यह है कि सत्य के बिना काम नहीं चल सकता । सत्य ईश्वरीय सहारा है। इस सहारे की विद्यमानता में किसी भी काम में जरा सा इशारा होने की आवश्यकता है, फिर कार्य सिद्ध होने में विलम्ब नहीं लगता । मगर लोग यह अनुभव नहीं करते। वे झूठ में ऐसे तल्लीन हैं कि उन्हें सत्य के अमोघ सामर्थ्य पर विश्वास ही नहीं है । सत्य का शरण ग्रहण करो तो परम कल्याण होगा।
मिथ्यादर्शनशल्य यहां दर्शन का अर्थ है-अभिप्राय । जिसे मिथ्यादर्शन का शल्य लग गया, उसे सब बातें झूठी ही झूठी दिखाई देती हैं। ऐसे आदमी को देखकर ज्ञानी को शिक्षा लेनी चाहिये कि - हे आत्मन् ! तूं इस मिथ्यादर्शन शल्य से बचना ! देख, यह बेचारा अज्ञानी मिथ्यादर्शन शल्य के ही कारण सत्य को भी असत्य रूप में देखता है।
इस प्रकार गौतम स्वामी ने अठारह ही पापों के विषय में प्रश्न किये और भगवान् ने सबके उत्तर दिये। अपने हृदय का समाधान करके गौतम स्वामी सेवं भंते! सेवं भंते! कहकर तप-संयम में लीन हो गये ।
१३२ श्री जवाहर किरणावली