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है। दूसरा कोट पहनने से शरीर में खराबी होती है। यदि ऐसे अवसर पर आपके सामने दूसरा आदमी ठंड का मारा मर रहा है, आप उसे कोट न देकर कहें कि यह कोट हमारा है, तो यह अदत्तादान है या नहीं? अगर आपके पास बेकाम पड़ा हुआ कोट, शीत से पीड़ित पुरुष छीन ले तो उसे सरकार दंड देती है, परन्तु जिन्होंने बिना आवश्यकता के दो कोट पहन रक्खे हैं, या कई-एक कोट वृथा संदूकों में भर रक्खे हैं, उन्हें सरकार सजा नहीं देती। ऐसा विचित्र यह न्याय है! सरकार छीनने वालों को ही दंड देने का कानून बना सकती है, इससे आगे उसकी गति कुंठित हो गई है, लेकिन धर्म कहता है कि अपने पास इतना अनावश्यक रखना कि जिसके कारण दूसरे जीवित न रह पावें, अदत्तादान नहीं तो क्या है?
आपने एक मजदूर से बोझा उठवाया। आप उसे मजदूरी देंगे। उसने तो अपना पेट भरने के लोभ से अपनी शक्ति से अधिक बोझ उठाया, लेकिन आपको उसकी शक्ति देखना चाहिए। उसमें अगर उतना बोझ उठाने की शक्ति नहीं है और आप जानते हैं कि इतना बोझ उठाने से वह अधमरा हो जायगा, फिर भी आपने उस पर बोझ लाद दिया, तो पैसे देने के कारण आप व्यवहार में चाहे न पकड़े जावें, लेकिन शास्त्र कहता है कि यह अतिभारारोपण नामक अहिंसाव्रत का अतिचार है। मतलब यह है कि आप जिसे हक मानते हैं, वह वास्तव में हक है या नहीं, इस बात का विचार आपको गम्भीरतापूर्वक करना चाहिए। कोट पहनकर अपनी ठंड मिटा लेना आपका हक है, लेकिन आप अनावश्यक लादे रहे और दूसरा ठंड के मारे मर रहा हो, यह हक आपको नहीं है। बेईमानी से कमाना और बेईमानी से खर्च करना हक नहीं है। गीता में भी कहा है कि जिसने दिया है, उसे न देकर अकेले हड़प जाना चोरी है।
आपको जिन गरीबों ने कपड़ा बनाकर दिया है, वे नंगे उघाड़े शीत का कष्ट भोग रहे हैं और आप अनावश्यक दो कोट पहने खड़े हैं ! अगर आपने अपने दो कोटों में से एक ठंड से मरने वाले गरीब को दे दिया, तब तो कहा जायगा कि आपने हक का विचार किया है, अन्यथा आप हक पर, न्यायनीति पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसी अवस्था में शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार अदत्तादान की क्रिया की।
अगर आप अदत्तादान की क्रिया से बचना चाहते हैं तो हक कायदे के कोई भी काम मत कीजिए। एक दरी अगर चौड़ी बिछा ली जाय तो उस पर कई आदमी बैठ सकते हैं पर ऐसा न करके उस दरी को समेट कर आप ही अकेले बैठ जायं तो यह कायदे की बात नहीं।
- भगवती सूत्र व्याख्यान १२६