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यहां टीकाकार ने कहा है कि जैसे एक कम्बल की तह कर लेने पर वह कम्बल लम्बा-चौड़ा और मोटा हो जाता है। उस कम्बल में कोई कीड़ा ऊपर से नीचे तक छेद कर दे तो उस छेद और कम्बल में छहों दिशाओं से स्पर्श होगा। प्रत्येक बात, जिस अपेक्षा से कही जाती है, उसी अपेक्षा से समझी जाय तो ठीक तरह समझ में आ सकती है। शास्त्रकार एक जगह तो सुमेरु की अपेक्षा से दिशा बतलाते हैं और एक जगह वस्तु की अपेक्षा से एक एक आकाश प्रदेश ऊंचा, एक नीचा और तिर्छा होने पर छहों दिशाएं स्पर्श करती हैं।
___ अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! धूप का अन्त छाया के अन्त से और छाया का अन्त धूप के अन्त से मिला है? अर्थात् स्पर्श करता है?
भगवान् ने उत्तर दिया- गौतम! हां, स्पर्श करता है। गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! एक दिशा से स्पर्श करता है या छहों दिशाओं से? भगवान् फर्माते हैं-छहों दिशाओं से।
प्रश्न हो सकता है कि धूप में मोटाई नहीं होती, फिर छहों दिशाओं में स्पर्श होना किस दृष्टि से कहा गया है? इसका उत्तर यह है कि-कल्पना कीजिए, एक पक्षी आकाश में उड़ रहा है और उसकी छाया नीचे पड़ रही है। यह छाया अपेक्षाकृत ऊंची, नीची और तिी है। अतएव वह छहों दिशाओं में धूप के अन्त से स्पर्श करती है। इस बात को स्पष्ट करने के लिए टीकाकार ने एक उदाहरण और दिया है। वह कहते हैं-मान लीजिए, एक ऊंचा महल है उसकी छाया ढलती हुई गिर रही है। वह धूप के अन्त से ऊंची दिशा में भी स्पर्श करती है, नीची दिशा में भी स्पर्श करती है और तिर्की दिशा में भी स्पर्श करती है। मतलब यह है कि आप छाया की मोटाई नहीं देख सकते, मगर शास्त्रकार उसे असंख्यात प्रदेश ही कहते हैं। उन असंख्यात प्रदेशों में कई प्रदेश ऊंचे हैं, कई नीचे हैं और कई तिर्छ हैं। इस प्रकार छाया को धूप और धूप को छाया छहों दिशाओं में स्पर्श करती है।
फिर वही प्रश्न उपस्थित होता है कि आखिर इस प्रकार के प्रश्नोत्तरों से लाभ क्या है? इनसे कौन-से महत्वपूर्ण तत्त्व पर प्रकाश पड़ता है? इसका उत्तर यह है कि शास्त्रकार एक अंश तो स्पष्ट बतलाते हैं और दूसरा अंश हेतु से बतलाते हैं। लोक और अलोक के अन्त का स्पर्श बतलाने के समय यह प्रश्न नहीं हुआ कि गौतम स्वामी यह प्रश्न क्यों पूछते हैं? केवल धूप और छाया के प्रश्न के समय यह प्रश्न क्यों हुआ इसीलिए कि लोक और अलोक का अन्त दिखाई नहीं देता और धूप तथा छाया दिखाई देती है। मगर १०४ श्री जवाहर किरणावली