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अर्थात्-व्यापक-ईश्वर कर्म नहीं कराता है और न कर्मफल का संयोग ही कराता है।
गीता के इस कथन पर विचार करने से क्या यह मालूम नहीं होता कि यही बात जैन भी कहते हैं? विचार करने पर अवश्य ही बात मालूम होगी।
मतलब यह है कि वास्तव में ईश्वर ने जीव को संसार में नहीं बांध रक्खा है। मगर इससे प्रश्न हल नहीं होता। प्रश्न अब भी उपस्थित है कि तो फिर जीव को किसने बांध रक्खा है? इसी बात को स्पष्ट करने के लिए गौतम स्वामी आगे प्रश्न करते हैं।
गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-प्रभो! क्या संसारी जीव मोह में पड़कर अपने सुख के लिए या और किसी कारण से प्राणातिपात-क्रिया करते हैं ? अर्थात् जीव का घात करने की क्रिया करते हैं? गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हां गौतम! करते हैं। तब गौतम स्वामी पूछते हैं-प्रभो! जीव प्राणातिपात-क्रिया आप करते हैं या और कोई कराता है? अर्थात् ईश्वर, काल, आदि कोई कराता है?
अनेक नर और नारियां किसी प्रकार का दुःख या शोक होने पर राम को भला-बुरा कहते हैं। उसे कोसते हैं। मगर सच्चाई यह है कि उस दुःख शोक का कारण वह स्वयं ही है। अतएव किसी दूसरे को कोसना वृथा है या दूसरे को कोसना अपने को ही कोसना है। कारण यह है कि प्रत्येक जीव अपने सुख दुःख का कारण आप ही है। काम आप करना और उसका उत्तरदायित्व किसी अन्य के सिर मढ़ देना उचित नहीं है। यही बात समझाने के लिए गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम ! जीव प्राणातिपात की क्रिया स्वयं करता है, दूसरा कोई नहीं कराता। अगर दूसरा कोई कराता है तो कराना ही उसकी क्रिया है और उसके फल का भागी वह होता है।
जीव प्राणातिपात की क्रिया से ही संसार के बंधन में पड़ा है। बंधन में डालने वाला दूसरा कोई नहीं है।
__ हे आत्मन्! तू ही प्राणातिपात क्रिया का कर्ता है और प्राणातिपात क्रिया ही बंधन है। इसे अगर रक्षा में (जीव रक्षा में) पलट दे तो मुक्ति का प्रशस्त पथ तुझे दिखाई देने लगेगा। आघात का प्रत्याघात और गति की प्रत्यागति होती ही है। तुम्हारा हाथ चलेगा तो दूसरे का भी चलेगा ही। जब तुम दूसरे को मारने के लिए हाथ उठाते हो, तो सावधान होकर सोच लो कि
- भगवती सूत्र व्याख्यान १११