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तिर्छे लोक में तो असंख्यात द्वीप हैं, क्या आप सभी द्वीपों में रहते हैं? तब आप उत्तर देंगे - जम्बू द्वीप में । इस प्रकार संकीर्णता की ओर बढ़ते-बढ़ते आप अन्त में यह कहेंगे कि आत्मा तो ज्ञान, दर्शन, चरित्र आदि रूप अपने स्वभाव में रहता है, अन्यत्र नहीं । अर्थात् यह मानना पड़ेगा कि आत्मा शरीर में भी नहीं रहता है। इस प्रकार विभिन्न नय विवक्षाओं से व्यवहार होता है। यह सब बातें ज्ञानियों की संगति करने से आती हैं।
१०६ श्री जवाहर किरणावली