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समुद्र का अन्त द्वीप के अन्त को स्पर्श करता है। और वह छहों दिशाओं से स्पर्श करता है।
___ यहां यह प्रश्न होता है कि द्वीप अन्त सागर के अन्तको और सागर का अन्त द्वीप के अन्त को छहों दिशाओं से कैसे स्पर्श करता है? इसका उत्तर यह है कि द्वीप और समुद्र को हम लोग जिस प्रकार देखते हैं, उससे शास्त्रीय दृष्टि भिन्न प्रकार की है। शास्त्र में जम्बूद्वीप को लगभग एक हजार योजन गहरे से बतलाया गया है और समुद्र का तलभाग भी इतना ही गहरे से है। अतएव द्वीपों और समुद्रों का अन्त एक-दूसरे से नीचे भी स्पर्श करता है, बीच में भी स्पर्श करता है और ऊपर भी स्पर्श करता है।
यों तो सुमेरुपर्वत से दिशाओं की कल्पना की गई है। परन्तु यहां द्वीप और समुद्र के हिसाब से भी दिशा ली गई है। यानी सुमेरुपर्वत के हिसाब से सब जगह दिशा नहीं ली जा सकती, इसलिए वस्तु के हिसाब से भी दिशा का व्यवहार होता है।
यहां पर कहा जा सकता है कि शास्त्रकारों ने तो केवल यही कहा है कि समुद्र और द्वीप का छहों दिशाओं से स्पर्श होता है; दिशा सुमेरु से लेना या वस्तु के हिसाब से, इस सम्बन्ध कुछ भी नहीं कहा है। एकसी अवस्था में वस्तु की अपेक्षा दिशा का व्यवहार होता है; यह बात कैसे फलित होती है! इसका समाधान यह है कि इसी प्रश्नोत्तर से यह बात फलित होती है। गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा है कि नाव का अन्त और जल का अन्त आपस में स्पर्श करते हैं? भगवान् ने उत्तर दिया-हाँ, स्पर्श करते हैं। फिर गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन्! कितनी दिशाओं में स्पर्श करते है? भगवान ने फर्मायागौतम छहों दिशाओं में । इस प्रश्नोत्तर में नौका की दिशा से जल है और जल की दिशा से नौका है। यहां वस्तु की अपेक्षा ही दिशा का व्यवहार फलित होता है।
समुद्र में जहाज और नदी में नौका कोई देखता है, कोई नहीं देखता। अर्थात् किसी को देखने का मौका नहीं मिलता। इसलिए गौतम स्वामी अत्यन्त सन्निकट की वरतुओं को लेकर प्रश्न करते हैं- भगवन्! कपड़े का अन्त छिद्र को और छिद्र का अन्त कपड़े को स्पर्श करता है? भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम! हां, स्पर्श करता है। जब गौतम ने पूछा- प्रभो, एक दिशा में स्पर्श करता है या छहों दिशाओं में? तब भगवान् ने उत्तर दिया- गौतम छहों दिशाओं में।
भगवती सूत्र व्याख्यान १०३