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ज्ञानियों ने पृथ्वी में जीव बतलाने के साथ ही ऐसा उपाय बतलाया है जिससे हम इस विषय में विश्वास भी कर सकते हैं।
यह तो देखा ही जाता है कि खुदी हुई खदान फिर भर जाती है। साइंस द्वारा पत्थरों का बढ़ना भी सिद्ध हो चुका है। बढ़ना जीव की शक्ति का ही आवेश है। निर्जीव चीज स्वयं नहीं बढ़ सकती। पत्थर किस प्रकार बढ़ता है, यह बात अपने आप से ही देखो। मनुष्य के हाथ-पैर बचपन में छोटे-छोटे होते हैं, फिर धीरे-धीरे बढ़ जाते हैं। क्या पैर बोलता, खाता या पीता है? 'नहीं!
पैर की हड्डी पत्थर जैसी होती है, फिर भी पैर बढ़ा तो क्या चैतन्य की शक्ति के बिना ही बढ़ा है? अथवा चैतन्य शक्ति के कारण उसमें वृद्धि हुई है? जैसे चैतन्य शक्ति के द्वारा पैर की हड्डी बढती है, उसी प्रकार पत्थर भी बढ़ता है। अतएव यह मानना उचित ही होगा कि जैसे हड्डी में जीव है, उसी प्रकार पत्थर में भी जीव है। स्वर्गीय जगदीशचन्द्र वसु ने भी यह बात सिद्ध की है कि जैसे बिजली मनुष्य के शरीर में है, वैसी ही बिजली पृथ्वी में भी है। उन्होंने यंत्रों की सहायता से पृथ्वी में भी जीव का अस्तित्व प्रमाणित किया
पृथ्वी की तरह पानी में भी जीव है। पानी में पड़े हुए कीड़े-मकोड़े ही पानी के जीव नहीं हैं, किन्तु पानी ही जीव का पिंड है। यह पूछा जा सकता है कि पानी में जीव होने का क्या प्रमाण है? मगर इससे पहले हमें यह भी सोचना चाहिए कि हमारे शरीर में जीव है या नहीं, इस बात का क्या प्रमाण है? जब मनुष्य को क्लोरोफॉर्म सुंघा दिया जाता है, तब उसके शरीर में जीव रहता है या नहीं? मूर्छित अवस्था में कभी श्वास भी बन्द हो जाता है। उस समय भी जीव होता है या नहीं? अगर होता है तो जीव होने न होने की पहचान क्या है? जीव है या नहीं, इसकी पहचान शरीर की गर्मी या ठंडक है। शरीर में जीव होने पर शरीर गर्म रहता है और जीव निकल जाने पर शरीर ठंडा हो जाता है। शरीर में जीव होने न होने की यही पहचान है। शरीर की उष्णता जीव का लक्षण है। पानी में भी ऐसे ही लक्षण वाले जीव हैं। अगर मनुष्य जाड़े के दिनों में, भूमि के भीतरी भाग में भोयरे में सोएगा तो उसका शरीर बाहर निकलने पर गर्म रहेगा और गर्मी के मौसम में ऐसे स्थान पर सोएगा तो शरीर ठंडा रहेगा। जाड़े के दिनों में मुंह से भाप निकलती है। यह भी जीव का लक्षण है। यह लक्षण पानी के जीवों में भी मनुष्यों की ही तरह पाये जाते हैं। गहरे कुएं में, गर्मी के दिनों में पानी ठंडा रहता है और जाड़े ७६ श्री जवाहर किरणावली