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के दिनों में गर्म रहता है। पानी में से भी भाप निकलती है। पानी में जीव हैं, यह बात समझाने के लिए ज्ञानियों ने अनेक उदाहरण और हेतु बतलाये हैं। गर्मी-सर्दी आदि का जो प्रमाण आपके शरीर में मिलता है, वही पानी में भी मिलता है। अतएव पानी में जीव हैं, इसमें संदेह नहीं रहता।
अगर पानी में जीव न होते तो ज्ञानियों को जीव बतलाने से क्या लाभ था! अगर कोई कहे कि अपने मजहब की विशेषता बतलाने के लिए बतला दिये होंगे तो यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि पानी में जीव बतलाने या न बतलाने से मजहब में कोई विशेषता नहीं आती। तो फिर पानी में जीव न होने पर भी जीव होना बतलाकर उन्होंने अपना कौनसा स्वार्थ-साधन किया है? ईसाई लोग मनुष्य में आत्मा मानते हैं, मगर गाय में नहीं मानते क्योंकि वे गाय का मांस-भक्षण करते हैं। जब उनसे इस विषय में प्रमाण मांगा जाता है तो कहते हैं कि ईश्वर ने पशुओं को प्राण दिया है, आत्मा नहीं दी। पशु जो चेष्टा करते हैं वह प्राण की ही चेष्टा है। मतलब यह कि ईसाइयों को गाय खाना छोड़ना नहीं था, इसलिए उन्होंने गाय में आत्मा नहीं माना। परन्तु पानी में जीव का अस्तित्व बतलाने वाले ज्ञानियों का ऐसा कौनसा स्वार्थ था, जिससे प्रेरित होकर वे पानी में जीव बतलाते? बल्कि जल में जीव बतलाने और मानने से कुछ कष्ट ही बढ़ा है, न बतलाने में अधिक स्वतंत्रता और सुविधा थी। स्वयं कष्ट उठा करके भी और असुविधाओं की चिन्ता न करके भी, केवल सत्य की खातिर जल में जीवों का अस्तित्व मानना यह उनकी महान निस्पृहता, सत्यपरायणता और आप्तता है।
जल में जीव मानकर कुछ लोगों ने साधुओं की जिम्मेवारी श्रावकों पर डाल दी है। यह नितान्त अनुचित है। शास्त्रों में श्रावक को जल का दुरुपयोग न करने का उपदेश दिया गया है। यही बात अन्य शास्त्रों में भी है कि जल वृथा नहीं बिगाड़ना चाहिए, बिना छाना जल काम में नहीं लाना चाहिए और जलाशय में घुसकर भैंस की तरह क्रीड़ा नहीं करनी चाहिए। जल जगत् का रक्षक पदार्थ है। संस्कृत भाषा में इसे 'जीवन' कहते हैं। गुलाब के इत्र के बिना संसार का काम बखूबी चल सकता है परन्तु जल के बिना नहीं चल सकता। संसार में अनेक मनुष्य ऐसे होंगे जो गुलाब के इत्र को जानते ही न होंगे, परन्तु क्या कोई मनुष्य ऐसा भी मिल सकता है जिसने कभी पानी न पिया हो? जेब में गुलाब के इत्र की शीशी पड़ी हो परन्तु जब प्यास के मारे गला सूख गया हो और मुंह से बोल न निकलता हो, तब वह इत्र काम दे सकेगा? उस समय एक लोटा जल के बदले अगर कोई इत्र की शीशी मांगे
- भगवती सूत्र व्याख्यान ७७