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जब सूर्य सर्दी को नष्ट कर देता है तथा बारीक से बारीक वस्तुएं भी नजर पड़ने लगती है, तब सूर्य का तपना कहलाता है।
यह सूर्य का सामान्य-विशेष धर्म दिखाया गया है। लेकिन सूर्य कहां प्रकाश करता है? इस सम्बन्ध में गौतम स्वामी ने क्षेत्र के लिए प्रश्न किया है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया था-सूर्य क्षेत्र को स्पर्श करके प्रकाश करता है, बिना स्पर्श किये नहीं। इस उत्तर पर यह जिज्ञासा हो सकती है कि सूर्य तो ऊपर है, फिर वह प्रकाशित होने वाले क्षेत्र का स्पर्श किस प्रकार करता है? इसका समाधान यह है कि सूर्य नीचे नहीं आता, यह सत्य है, परन्तु उसकी किरणें और प्रकाश तो नीचे आता ही है। सूर्य, किरणें और प्रकाश, यह तीनों सर्वथा भिन्न-भिन्न वस्तुएं नहीं हैं। अगर सूर्य प्रकाशमय न होता तो कौन उसे पहचानता? सूर्य की किरणें और प्रकाश क्षेत्र का स्पर्श करते हैं, अतएव सूर्य का स्पर्श करना स्वतः सिद्ध हो जाता है। प्रकाश सूर्य का ही अंग है।
उल्लिखित प्रश्नोत्तरों के अंत में जो उत्तर दिया गया है, उसमें 'जावनियमा छद्दिसिं' ऐसा पाठ आया है। इसमें 'जाव' शब्द से जिस पाठ का संग्रह किया गया है, वह इस प्रकार है :
उत्तर-गोयमा! पुटुं ओभासेइ, नो अपुट्ठ। प्रश्न-तं भंते! ओगाढं ओमासेइ, अणोगाढं ओभासेइ?
उत्तर-गोयमा! ओगाढं ओमासेइ, नो अणोगाढं। एवं अणंतरोगाढं ओमासेइ, नो परंपरोगाढं।
प्रश्न-तं भंते! किं अणुं ओभासेइ, बायरं ओमासेइ? उत्तर-गोयमा! अणु पि ओमासेइ, बायरं पि ओभासेइ। प्रश्न-तं भंते! उड़ढं ओमासेइ, तिरियं ओमासेइ, अहे ओमासेइ। उत्तर-गोयमा! उड्ढं वि, तिरियं वि, अहे वि ओभासेइ। प्रश्न-तं मंते! आई ओमासेइ, मज्झे ओमासेइ, अंते ओमासेइ? उत्तर-गोयमा! आई वि, मज्झे वि, अन्ते वि ओभोसइ। प्रश्न-तं भंते! सविसए ओमासेइ, अविसए ओमासेइ? उत्तर-गोयमा! सविसए ओमासेइ, नो अविसए। प्रश्न-तं भंते! आणुपुब्बिं ओभासेइ, अणाणुपुट्विं ओमासेइ? उत्तर-गोयमा! आणुपुव्विं ओमासेइ, णो अणाणुपुट्विं? प्रश्न-तं भंते! कइदिसिं ओभासेइ? उत्तर-गोयमा! नियमा छद्दिसिं ति।
भगवती सूत्र व्याख्यान ६३
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