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उत्तर-हे गौतम! मर्यादा में प्रकाश करता है, बाहर नहीं। प्रश्न-भगवन्! सूर्य क्रम से प्रकाश करता है या अक्रम से? उत्तर-हे गौतम! सूर्य क्रम से प्रकाश करता है। प्रश्न-भगवन्! सूर्य कितनी दिशाओं में प्रकाश करता है? उत्तर-हे गौतम! नियम से छहों दिशाओं में प्रकाश करता है?
इन पदों की व्याख्या टीकाकारों ने प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक में स्पष्ट रूप से की है। वही व्याख्या यहां भी समझ लेना चाहिए।
यहां गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया था कि सूर्य जिस क्षेत्र को स्पर्श कर रहा है उसे 'स्पर्श किया ऐसा कहा जाता है? जैसे वस्त्र का एक-एक तार भिन्न-भिन्न समय में टूटता है, फिर भी फटते हुए वस्त्र को 'चलमाणे चलिए इस सिद्धांत के अनुसार 'फटां कहते हैं। इसी प्रकार सूर्य एक क्षेत्र को कई समयों में स्पर्श करता है, लेकिन पहले समय में उसने जितने क्षेत्र का स्पर्श किया, उतने क्षेत्र की अपेक्षा कहा जायगा कि-सूर्य ने क्षेत्र का स्पर्श किया। इस सम्बन्ध में 'चलमाणे चलिए' इस प्रश्नोत्तर में विशेष रूप से विचार किया गया है।
इस प्रश्नोत्तर में वर्तमान और भविष्य की बात भूतकाल में दाखिल की गई है। यानी यह माना गया है कि काम समाप्त हुआ नहीं है, लेकिन जैसे ही उसका प्रारम्भ हुआ, वैसे ही वह समाप्त मान लिया जायगा। यों साधारण रूप से तो यह मालूम होता है कि भविष्यकालीन बात भूतकाल में किस प्रकार कही जा सकती है? मगर ऐसा किये बिना काम नहीं चल सकता। ज्ञानीजन कहते हैं-हम तो भविष्य को भूत में भी व्यवहार करते हैं, लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे तो क्या कहेंगे? कल्पना कीजिए-एक आदमी बम्बई जाने के लिए घर से निकला। वह अभी तक बम्बई नहीं पहुंचा रास्ते में ही है, तब तक किसी दूसरे आदमी ने आकर उसके विषय में पूछा-अमुक आदमी कहां है ? तब उसके सम्बन्ध में क्या उत्तर दिया जायगा? क्या यही नहीं कहा जायगा कि वह बम्बई गया है? वह बम्बई पहुंचा नहीं है, फिर भी भविष्य की बात को भूतकाल में दाखिल करके ही व्यवहार होता है।
___ कहा जा सकता है कि यह तो लोकव्यवहार की बात है। सांसारिक जन कैसे भी व्यवहार करें; मगर ज्ञानियों को तो समझबूझ कर ही बोलना चाहिए। इसका उत्तर यह है कि ज्ञानी जन बिना सोचे-समझे नहीं बोलते। जो व्यक्ति बम्बई का फासला जितने कदम कम कर रहा है। वह उतने ही अंशों में बम्बई पहुंचा है। कदाचित् यह कहा जाय कि एक रास्ता कई जगह
- भगवती सूत्र व्याख्यान ६५