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श्रीमद्भगवती सूत्र
प्रथम शतक षष्ठोद्देशक विषय प्रवेश
प्रत्येक उद्देशक आदि में जिस प्रकार उपोद्घात किया गया है, उसी प्रकार का यहां भी कर लेना चाहिये। पांचवें उद्देशक के साथ इस छठे उद्देशक का क्या संबंध है, यह जान लेना आवश्यक है। पांचवें उद्देशक के अन्त में कहा गया है कि असंख्यात ज्योतिषी देवों के असंख्यात स्थान हैं। जो देव ज्योतिर्मय हैं, उन्हें ज्योतिष्क कहते हैं। चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, और तारा, यह पांच प्रकार के ज्योतिष्क देव हैं।
पांचवें उद्देशक के अन्त में ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का वर्णन किया था। इन दोनों प्रकार के देवों में क्या अन्तर है? इसका अन्तर यह है कि ज्योतिषी देव दिखाई देते हैं, और वैमानिक देव नहीं दिखाई देते।
कई लोग कहते हैं, कि स्वर्ग नहीं देखा, लेकिन स्वर्ग भले ही न देखा हो मगर चन्द्र, सूर्य तो प्रतिदिन दिखाई देते ही हैं। जब चन्द्रमा और सूर्य हैं तो उनमें बसने वाले भी कोई देव होंगे ही। ये चन्द्र और सूर्य हमें जो दिखाई देते हैं, ज्योतिषी देवों के विमान हैं। यही चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे रूप में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं। कदाचित् चन्द्र, नक्षत्र, ग्रह और तारे किसी समय न दिखाई दें तो भी सूर्य तो बिना नागा किये प्रतिदिन प्रत्यक्ष होता है। अतएव इस उद्देशक में सूर्य के संबंध में प्रश्न करते हैं।
प्रश्न-जावइयाओ ओणं भंते! उवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वियणं सूरिए तावइयाओ चेव उवासंतराओ चक्खुप्फासं! हव्व मागच्छति? १६ श्री जवाहर किरणावली