________________
उत्तर - हन्त, गौतम! सर्वमिति यावत् वक्तव्यं स्यात् । प्रश्न - तद् भगवन् ! किं स्पृष्टं स्पृशति, अस्पृष्टं स्पृशति ? उत्तर- यावत्-नियमात् षदिशम् ।
प्रश्न-भगवन् ! जितने अवकाशान्तर से अर्थात् जितनी दूरी से उगता सूर्य आंखों से देखा जाता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता हुआ सूर्य भी शीघ्र दिखाई देता है?
उत्तर-हे गौतम! हां, जितनी दूर से उगता सूर्य आंखों से दीखता है, उतनी ही दूर से अस्त होता सूर्य भी आंखों से दिखाई देता है ।
प्रश्न- भगवन् ! उदय होता हुआ सूर्य अपने ताप द्वारा जितने क्षेत्र को, सब प्रकार, चारों ओर से, सभी दिशाओं और विदिशाओं में - प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और खूब उष्ण करता है, उतने ही क्षेत्र को सब दिशाओं में और सब विदिशाओं में अस्त होता सूर्य भी अपने ताप द्वारा प्रकाशित करता है? उद्योतित करता है ? तपाता है? खूब उष्ण करता है? उत्तर- हे गौतम! हां उगता सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है उतने ही क्षेत्र को अस्त होता सूर्य भी प्रकाशित करता है यावत् खूब उष्ण करता है ।
प्रश्न-भगवन्! सूर्य जिस क्षेत्र को प्रकाशित करता है, वह क्षेत्र सूर्य स्पृष्ट स्पर्श किया हुआ होता है या अस्पृष्ट होता है ?
से
उत्तर - हे गौतम! वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है और यावत् उस क्षेत्र को छहों दिशाओं में प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और खूब तपाता है। यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में खूब तपाता है ।
प्रश्न- भगवन् ! स्पर्श करने के काल - समय में सर्वाय - सूर्य के साथ संबंध रखने वाले जितने क्षेत्र को सर्व दिशाओं में सूर्य स्पर्श करता है उतना स्पर्श किया जाता हुआ वह क्षेत्र 'स्पृष्ट' कहा जा सकता है?
उत्तर - हे गौतम! हां, सर्व यावत् वह स्पृष्ट है ऐसा कहा जा सकता है। प्रश्न-भगवन्! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है या अस्पृष्ट क्षेत्र का
स्पर्श करता है?
उत्तर - हे गौतम! स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है । यावत्-नियम से छहों दिशाओं में स्पर्श करता है ।
व्याख्यान
गौतम स्वामी का पहला प्रश्न यह है कि भगवन् ! उगता सूर्य, जितनी दूर से आंखों से दिखाई पड़ता है, क्या डूबता हुआ सूर्य भी उतनी ही
श्री जवाहर किरणावली
८८