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देकर कहें-बहिन, रोती क्यों हो? सदगुरु के पास से धर्म की जो तलवार लाई हो, उसे इस दुःख रूपी शत्रु पर क्यों नहीं चलाती? इस शत्रु पर अगर तलवार न चलाई तो वह फिर किस काम में आवेगी?
प्रत्येक बात प्रकृति का हिसाब देखकर सहज ही समझी जा सकती है। शेर भी पशु है और कुत्ता भी पशु है। लेकिन दोनों की प्रकृति में महान् अन्तर है। शेर को अगर कोई गोली मारता है तो वह तीर या गोली पर नहीं झपटता, किन्तु तीर या गोली चलाने वाले पर आक्रमण करता है। असली शेर के संबंध में कहा जाता है कि जिस स्थान से उस पर गोली चलाई जाती है, वह एक बार उस स्थान पर पहुंचने की कोशिश करता है। इसीलिए गोली या तीर चलाने वाला, तीर या गोली चलाकर कायरता धारण करके उस स्थान से भाग जाता है। शेर समझता है कि दोष गोली या तीर का नहीं है, चलाने वाला ही इसके लिए उत्तरदायी है।
इससे विरुद्ध कुत्ते की प्रकृति पर विचार कीजिए। अगर कुत्ते को कोई लकड़ी या पत्थर फेंककर मारता है तो वह मारने वाले के बदले लकड़ी या पत्थर को ही काटने दौड़ता है। उसे नहीं मालूम कि दोष लकड़ी पत्थर का नहीं, मारने वाले का है। कई कुत्ते शक्ल में शेर सरीखे होते हैं, मगर दोनों के स्वभावों में तो जमीन आसमान का अन्तर है।
___ यही बात सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि के संबंध में है। सम्यग्दृष्टि की प्रकृति शेर के समान होती है और मिथ्यादृष्टि का स्वभाव कुत्ते के समान होता है। सुख-दुःख तो सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि-दोनों को होते हैं, मगर सम्यग्दृष्टि दुःख देने वालों को नहीं, वरन् दुःख के कारण को मारता है। सम्यग्दृष्टि दुःख के मूल उद्गम स्थान की खोज करता है। दुःख का उद्गमस्थान खोजकर वह उससे प्रवाहित होने वाली दुःख की सरिता को बंद कर देता है अगर वह भी शेर की तरह दुःख देने वाले को मारने लगे तो उसमें और पशु में क्या अन्तर रहेगा? सम्यग्दृष्टि, इस बात में शेर की अपेक्षा अधिक विवेक से काम लेता है। कुत्ता लकड़ी-पत्थर पर झपटता है, शेर दुःख देने वाले की खबर लेता है और सम्यग्दृष्टि दुःख के मूल कारण को ही नष्ट करता है। सम्यग्दृष्टि सोच लेता है कि दुःख देने वाला वास्तव में दोषी नहीं है, वह तो निमित्त मात्र है। दुःख तो असल में मेरी दुर्वृत्तियों ने पैदा किये हैं-मैं ही इनका जनक हूं और मैं ही इनका नाश कर सकता हूं। अनगारसिंह अनाथी मुनि ने नरसिंह श्रेणिक से कहा था -
- भगवती सूत्र व्याख्यान ६५