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में छोटा रहता है, फिर धीरे-धीरे बढ़ जाता है। इसलिए यह हाथ का उपयोग नहीं है, किन्तु 'मेरा हाथ' कहने वाले को उपयोग कहते हैं। मेरी देह ऐसा कहने में 'मेरी' कहने वाले का उपयोग है। इसी उपयोग से आत्मा की प्रतीति होती है। अगर यह न हो तो आत्मा की प्रतीति होना ही कठिन हो जाय।
साकारोपयोग ज्ञान का और निराकारोपयोग दर्शन का होता है। सामान्य को जानना अनाकारोपयोग है और विशेष को जानना साकारोपयोग है।
अनपढ़ आदमी भी काले-काले अक्षर देखता है और पढ़ा लिखा भी। मगर दोनों के देखने में काफी अन्तर है। अनपढ़ आदमी आंख से ही अक्षर देखता है, मगर पढ़ा-लिखा बुद्धि से भी देखता है। स्थूल रूप में यह कहा जा सकता है कि यह आंख से ही देखना निराकार-उपयोग है और बुद्धि से भी देखना साकार-उपयोग है। एक को साधारण कालापन ही नजर आता है और दूसरे को उन अक्षरों में विशेषता मालूम होती है।
बात यह है कि प्रत्येक वस्तु में दो प्रकार के धर्म पाये जाते हैं-सामान्यधर्म और विशेष धर्म। जिस धर्म के कारण एक वस्तु दूसरी वस्तुओं के समान प्रतीत होती है वह सामान्य धर्म कहलाता है और जिस धर्म से एक को दूसरी वस्तु से निराला समझते हैं, वह विशेष धर्म कहलाता है। जैसे सभी गायों में गोत्व (गोपना) है। यह एक धर्म है। इसके कारण यह अन्य गायों के समान प्रतीत होती है, इसलिए यह सामान्य धर्म है। और ललाई गाय का विशेष धर्म है, क्योंकि वह सब गायों में नहीं पाया जाता है। इन दो प्रकार के धर्मों में से सामान्य धर्म को जानना निराकारोपयोग है और विशेष धर्मों को जानना साकारोपयोग है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने फरमाया-हे गौतम! नरक के जीवों में साकारोपयोग भी होता है और निराकारोपयोग भी होता है।
फिर गौतम स्वामी पूछते हैं भगवन्! साकारोपयोग और अनाकारोपयोग में वर्तने वाले नारकी जीव क्रोधी हैं, मानी हैं, मायी हैं या लोभी हैं? भगवान् ने उत्तर दिया यहां सत्ताईस भंग समझना चाहिए। नरक में ऐसा कभी नहीं होता, जब एक ही उपयोग वाले हों और दूसरे उपयोग वाले न हों।
यह रत्नप्रभा नरक के जीवों के संबंध में दस बातों की पृच्छा हुई। रत्नप्रभा की तरह सातों नरकों के जीवों की पृच्छा है। अन्तर केवल लेश्या में है। पहले और दूसरे नरक के जीवों में कापोत लेश्या है। तीसरे नरक में कापोत और नील लेश्या है। चौथे नरक में नील लेश्या है। पांचवें नरक में नील और कृष्ण लेश्या है। छठे नरक में कृष्ण लेश्या और सातवें में परम कृष्ण लेश्या है।
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श्री जवाहर किरणावली