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बदला भोगना होगा। कर्मशास्त्र की सत्यता के लिए ही शास्त्रकारों ने नरक का वर्णन किया है।
प्रत्यक्ष देखा जाता है कि एक मिनिट के अपराध के लिए राज्य द्वारा आयु भर का दंड मिलता है। राज्य के व्यवस्थापकों में इससे अधिक दंड देने की कोई शक्ति ही नहीं है। लेकिन जब एक मिनट के अपराध के लिए उम्र भर का दंड मिलता है तो जिसने उम्र भर ऐसे ही अपराध किये, उसे अपने अपराधों का फल भोगने के लिए कितना समय चाहिए। इसीलिए शास्त्रकारों ने नरक की आयु बतलाकर कहा है कि जो आत्मा यहां नरक के कारणभूत कार्य करता है उसे वहां फल भुगतना पड़ता है। चाहे शास्त्र पढ़ो, पुराण पढ़ो वेद पढ़ो या कुछ भी पढ़ो, मगर जब तक नरक समाज के योग्य कार्य नहीं रोके जाएंगे, तब तक केवल पढ़ने और उन्हें याद रख लेने मात्र से नरक में जाना नहीं रुक सकता। अतएव अगर ज्ञान प्राप्त किया है तो उसका फल नरक योग्य कार्यों का विरोध ही होना चाहिए।
एक नारकी जीव, दूसरे जीव को कष्ट देने के लिए जो शरीर बनाता है, वह उत्तर वैक्रियक कहलाता है और भवपर्यन्त रहने वाला शरीर भवधारणीय कहलाता है। नारकी जीवों के दोनों प्रकार के शरीरों का संस्थान-आकार हुंडक ही होता है।
यहां यह शंका हो सकती है कि उत्तर वैक्रिय शरीर का संस्थान नारकी जीव, हंडक क्यों बनाते हैं? सुन्दर क्यों नहीं बनाते? इसका उत्तर यह है कि भावना सुन्दर होने पर शरीर का आकार भी सुन्दर बन सकता है। लेकिन नारकों के भाव बुरे हैं, इसलिए उनके शरीर का आकार भी बुरा हुंडक-ही बनता है। उनकी लेश्या अशुभ-पापमय है। पापमय लेश्या होने के कारण उनमें दुष्टता रहती है जिससे आकार हुंडक यानि बेढंगा बनता है।
अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवान्! शरीर की आकृति से बेढंगे नारकी जीव क्रोधी हैं, मानी भी हैं, मायी भी हैं, और लोभी भी हैं। ऐसे जीव नरक में बहुत होते हैं, इसलिए सत्ताईस भंग समझना चाहिए।
संहनन और संस्थान लेश्या के अनुसार होते हैं, अतः अब गौतम स्वामी लेश्या के विषय में प्रश्न करते हैं।
५८ श्री जवाहर किरणावली