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उत्तर- गौतम! साकारोपयुक्ताऽपि, अनाकारोपयुक्ताऽपि । प्रश्न- एतस्या यावत् साकारोपयोग वर्तमानाः किं क्रोधोपयुक्ताः ? उत्तर-सप्तविंशतिर्भङ्गाः । एवमनाकारोपयुक्ता अपि सप्तविंशतिर्भङ्गाः। एवं सप्ताऽपि पृथिव्यो ज्ञातव्याः, नानात्वं लेश्यासु ।
गाथा:
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कापोती द्वयोः, तृतीयामां मिश्रिता नीलिका चतुर्थ्याम् । पंचम्यां मिश्रा, कृष्णा ततः परमकृष्णा ।। शब्दार्थ
प्रश्न- भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों को कितनी लेश्याएं कही हैं?
उत्तर - हे गौतम! एक कापोत लेश्या कही है।
प्रश्न- भगवान्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले कापोत लेश्या वाले नारकी क्या क्रोधोपयुक्त हैं?
उत्तर - हे गौतम! सत्ताईस भंग कहने चाहिएं।
प्रश्न- भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारकी क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्रमिथ्यादृष्टि हैं?
उत्तर - हे गौतम! तीनों प्रकार के हैं।
प्रश्न-भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारकी क्या क्रोधोपयुक्त हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सत्ताईस भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार मिथ्या दर्शन जानना । सम्यग् मिथ्या दर्शन में अस्सी भंग कहने चाहिए ।
प्रश्न- भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है?
उत्तर - हे गौतम! वे ज्ञानी भी है और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं उन्हें नियम से तीन ज्ञान होते हैं और जो अज्ञानी हैं उन्हें तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
प्रश्न- भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले और आभिनि बोधिक ज्ञान में वर्तने वाले नारकी क्या क्रोधोपयुक्त हैं?
उत्तर - हे गौतम! यहां सत्ताईस भंग कहना । और इसी प्रकार तीन ज्ञान और तीन अज्ञान कहना ।
प्रश्न- भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारकी मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, या काययोगी हैं?
भगवती सूत्र व्याख्यान ६१