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आपसी झगड़े किस प्रकार मिट जाते हैं, इसके लिए एक उदाहरण लीजिए।
एक आदमी ऊंट पर चढ़कर जंगल में जा रहा था। जाते-जाते उसने देखा-ऊंटों का एक टोला सामने खड़ा है और तीन आदमी आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। तीनों कहते हैं-मैं अपना हक नहीं छोड़ सकता, मैं अपना हक नहीं छोड़ सकता। आपस में बातें होते-होते मारामारी की नौबत आ पहुंची। यह ऊंट वाला समझदार था, इसलिए दूसरे के झगड़े को अपना झगड़ा और दूसरों की शान्ति को अपनी शान्ति समझता था। जब वह उनके पास पहुंचा तो उसने अपना ऊंट खड़ा किया और लड़ने वालों से पूछा-'भाइयों! आप लोग क्यों लड़ रहे हैं?'
उत्तर मिला-'तुम अपना रास्ता नापो। तुम्हें किसने पंच बनाया है ? हम भाई-भाई आपस में समझ लेंगे।'
___ऊंट वाला-तुम्हारा कहना ठीक है। लड़ाई प्रायः संबंधी में ही होती है। लेकिन मैं भी तो तुम्हारा संबंधी हूं।
उन्होंने कहा-'अरे जाओ जी, रास्ते चलते संबंधी बनने आए हो !'
ऊंट वाला-मैं तुम्हारी तरफ से चाहे संबंधी न होऊं, लेकिन मैं अपनी तरफ से तो संबंधी ही हूं। अगर अपना झगड़ा मुझे बता दो तो हानि क्या है?
__ आखिर लड़ने वालों पर उसकी बात का प्रभाव पड़ा। उनमें से एक ने कहा-हम तीनों भाई-भाई हैं। यह सत्तरह ऊंट हमारे हैं। हम में हक का झगड़ा हो रहा है। इन ऊंटों में एक के आधे हैं, एक के चौथाई हैं और एक के आठवें हिस्से के हैं। कुल ऊंट सत्तरह हैं। आधे के हकदार के हिस्से में साढ़े आठ होते हैं, चौथाई वाले के हिस्से में सवा चार और आठवें हिस्से के हकदार के हिस्से में दो से कुछ अधिक आते हैं। अपने हक में से कोई आधा या चौथाई ऊंट छोड़ने को तैयार नहीं है और ऊंट काटा नहीं जा सकता। अब झगड़ा मिटे तो कैसे?
ऊंट वाले ने इन तीनों भाइयों से कहा-मैं भी तो आपका ही हूं। आप अपने सत्तरह ऊंटों में एक मेरा ऊंट मिला लो और अपना-अपना हिस्सा ले लो। आपका हिस्सा होने पर अगर मेरा ऊंट बचा तो ठीक, न बचा तो भी कोई बात नहीं।
ऊंट वाले की बात सुनकर तीनों भाई बड़े प्रसन्न हुए। मन में सोचने लगे-ऊंट देकर संबंध जोड़ने वाला यह खूब मिला! उन्होंने उसका स्वागत करते हुए कहा-अच्छा, आप ही हमारा झगड़ा निबटाइए।
- भगवती सूत्र व्याख्यान ३६