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दूसरी बात है कि आप अहिंसा का पूर्णरूप से आचरण न कर सकें, लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि 'अहिंसा स्वयमेव एक अमोघ शक्ति है। आज अकेला भारत ही अहिंसा की शक्ति नहीं मानता, वरन् सारा एशिया और यूरोप भी अहिंसा की महिमा से गूंज रहा है।
अहिंसा कायरों की शान्ति नहीं है। कायरों ने तो अहिंसा को कलंकित किया है। जबसे अहिंसा कायरों की गोद गई है, तभी से गिर गई है। आज आपमें पूर्वजों के प्रताप से अहिंसा के जो संस्कार हैं, उनके कारण कोई लाख रुपयों का प्रलोभन दे तो भी आप बकरा मारने को तैयार न होंगे। लेकिन दूसरी ओर अपनी कायरता और भीरुता के कारण ऐसे-ऐसे काम कर डालते हैं कि जिनका परम्परा-परिणाम मनुष्यवध तक हो जाता है, फिर भी इसकी चिन्ता नहीं की जाती। बकरे की ओर ही देखा और दूसरी ओर भीरुता के कारण ध्यान न दिया तो यह अहिंसा को दूषित करना होगा। अहिंसा का भक्त न स्वयं डरेगा और न दूसरे को डराएगा। अगर आपने अहिंसा की प्रतिष्ठा न बढ़ाई तो संसार नरक बन जायगा। जैसे नरक में कोई समय ऐसा आता है जब सभी नारकी क्रोधी ही क्रोधी हो जाते हैं, इसी प्रकार इस लोक में भी ऐसा समय आ सकता है कि सभी मनुष्य हिंसक ही हिंसक हो जाएं!
यह पहले कहा जा चुका है कि क्रोध बहुत होने का अर्थ यह नहीं है कि नारकियों में मान, माया और लोभ नहीं होता। मान, माया और लोभ भी उनमें होते हैं, परन्तु उन जीवों का उपयोग जब क्रोध में रहता है, तब मान आदि में नहीं रहता। उदाहरण के लिए कल्पना कीजिए, किसी सेठ की चार दुकान हैं-एक बजाजी की है, सराफी की है, तीसरी गल्ले की है और चौथी पंसारी की है। दुकान चार हैं और दुकानदार एक है। वह दुकानदार सराफी की दुकान पर बैठ कर व्यापार करता है, तब उसकी शेष तीन दुकानें बंद नहीं हैं? लेकिन वह व्यापार एक ही दुकान पर कर रहा है! इसी प्रकार नरक के जीवों में क्रोध आदि चारों कषाय मौजूद है। जब वे क्रोधी होते हैं तब भी उनमें मान, माया और लोभ विद्यमान रहते हैं किन्तु उस समय वे क्रोध का ही व्यापार करते हैं। इसलिए उन्हें क्रोधी ही क्रोधी कहा है।
नरक में क्रोध बहुत होता है। अगर आप लोगों ने नरक नहीं देखा है तो घर या घट तो देखा है? क्रोध की अधिकता से घर या घट भी नरक के समान हो जाता है, यह तो आप देखते ही हैं। इसलिए ज्ञानियों ने कहा है कि जहां क्रोध बहुत है, वहीं नरक है। ४२ श्री जवाहर किरणावली