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नारकियों के शरीर स्थान कितने हैं? अर्थात् उन नारकियों के शरीर कितने आकाश-प्रदेशों में रहते हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं - हे गौतम! एक-एक नारकावास में बसने वाले जीवों के अवगाहना स्थान असंख्य - असंख्य हैं। कम से कम उनकी अवगाहना शरीर - अंगुल के असंख्यातवें भाग बराबर होता है। इस जघन्य अवगाहना से एक प्रदेश अधिक, दो प्रदेश अधिक, इस प्रकार असंख्यात प्रदेश अधिक तक के शरीर वाले होते हैं । अतः अवगाहना स्थान असंख्यात हैं 1
जिसमें जीव ठहरता है, वह अवगाहना है अर्थात् जीव की लम्बाई-चौड़ाई अवगाहना कहलाती है। यह शरीर अवगाहना है । जिस क्षेत्र में जीव रहते हैं उसे भी अवगाहना कहते हैं ।
अब गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! जघन्य अवगाहना वाले नारकी क्रोधी हैं, मानी हैं, मायी हैं या लोभी हैं?
भगवान उत्तर देते हैं- हे गौतम! स्थिति के समान यहां भी अस्सी भंग जानने चाहिएं। जघन्य अवगाहना से असंख्य प्रदेश अधिक तथा उत्कृष्ट अवगाहना वालों के सत्ताईस भंग होते हैं ।
यहां यह आशंका होती है कि जघन्य स्थिति में सत्ताईस भंग कहे हैं, फिर यहां जघन्य अवगाहना में अस्सी भंग कहने का क्या कारण है? इस शंका का समाधान यह है कि जघन्य स्थिति वाले नरक के जीव, जब तक जघन्य अवगाहना वाले रहते हैं, तब उनकी अवगाहना के अस्सी भंग ही होते हैं, क्योंकि जघन्य अवगाहना वाले जीव कम होते हैं । जघन्य अवगाहना वाले जिन नारकी जीवों के सत्ताईस भंग कहे हैं, वे जघन्य अवगाहना को उल्लंघन कर चुके होते हैं। उनकी अवगाहना जघन्य नहीं होती इसलिए सत्ताईस ही भंग कहे गये हैं ।
जघन्य अवगाहना से संख्यात प्रदेश की अधिक अवगाहना वाले जीव नरक में कम मिलते हैं, इसलिए अस्सी भंग कहे हैं और जघन्य अवगाहना से असंख्यात प्रदेश अधिक की अवगाहना वाले तथा उत्कृष्ट अवगाहना वाले जीव नरक में अधिक पाये जाते हैं, इसलिए उनके सत्ताईस भंग कहे हैं।
भगवती सूत्र व्याख्यान
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