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की निरन्तर प्रवाहित होने वाली धारा पर ध्यान दीजिए तो जान पड़ेगा कि यह वही जल है, जिसे हमने पहले देखा था। पर वास्तव में वह जल तो उसी समय चला गया और अब न जाने कहां पहुंचा होगा। उसके स्थान पर उसी के समान प्रतीत होने वाला दूसरा जल आ गया है। बिना क्रम टूटे, दूसरा जल आ जाने से पहले वाले जल का जाना मालूम नहीं होता। फिर भी यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि पहले वाला जल चला गया और उसके स्थान पर नया जल आ गया है। इसी प्रकार शरीर प्रतिक्षण नष्ट होता जाता है, परन्तु आयु के पूर्ण न होने से उसका नाश नहीं जान पड़ता है, आजकल वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि बारह वर्ष के बाद शरीर के सब परमाणु बदल जाते हैं; मगर सारे परमाणु किसी एक नियत समय में नहीं बदलते, वरन् क्षण-क्षण बदलते रहते हैं। इसी कारण उनका बदलना स्थूल दृष्टि से मालूम नहीं होता।
यहां एक प्रश्न हो सकता है कि मृत्यु हो जाने पर आत्मा जब शरीर रहित हो जाता है, उसके साथ देह नहीं रहती, तो फिर वह दूसरे शरीर में किसलिए प्रवेश करता है? अगर एक बार देह का संबंध छूट जाने पर भी, दुबारा देह धारण करना आवश्यक है तो फिर मोक्ष कैसे होगा? क्योंकि मोक्ष में जाने के पश्चात् फिर देह धारण करनी पड़ेगी? जहां जाने पर फिर कभी देह न धारण करनी पड़े, वही मोक्ष कहलाता है। तब फिर देह छोड़कर जाने वाला आत्मा फिर क्यों जन्मता है? अगर वह जन्मता है तो मुक्तात्मा क्यों नहीं जन्मते?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शरीर दो प्रकार के हैं-स्थूल और सूक्ष्म। स्थूल शरीर के तीन भेद हैं-औदारिक, वैक्रिय, और आहारक। सूक्ष्म शरीर दो प्रकार के हैं-तैजस और कार्मण। सांसारिक जीवों का स्थूल शरीर छूटता है, सूक्ष्म शरीर नहीं छूटता और मुक्त होने वाले महात्माओं का सूक्ष्म शरीर भी छूट जाता है। जिन महात्माओं का सूक्ष्म शरीर नहीं छूटता, उनमें स्थूल शरीर धारण करने के संस्कार का आत्यन्तिक विनाश कर देते हैं। यही कारण है कि संसारी मृतात्मा को पुनः शरीर धारण करना पड़ता है, मगर मुक्तात्मा को नहीं धारण करना पड़ता!
बड़ का फल जब तक तोड़ा नहीं जाता, तब तक दिखाई देता है। अगर उसे तोड़ा जाय तो उसमें हजारों बारीब-बारीक बीज नजर आते हैं। उन बीजों में से किसी भी बीज को देखिए, उसमें बड़ वृक्ष, डाली, फल, पत्ता आदि कुछ भी दिखाई न देगा।
- भगवती सूत्र व्याख्यान ५१