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एक शिष्य ने अपने ज्ञानी गुरु से पूछा-शरीर धारण करने का संस्कार क्या है? गुरु ने बड़ का बीज दिखा कर कहा-देखो, इस बीज में वृक्ष वगैरह कुछ दिखाई देता है? चेले ने कहा-इसमें तो कुछ भी नहीं दिखाई देता। गुरु ने बीज को फोड़ कर बतलाया-क्या अब भी कुछ दिखाई देता है? चेले ने फिर वही उत्तर दिया-नहीं, इसमें तो कुछ भी नहीं दीखता। तब गुरुजी बोले-यद्यपि इस बीज में वृक्ष, डाली, पत्ता आदि कुछ नहीं दिखाई देता, लेकिन इस बीज का मिट्टी और पानी से जब संयोग होता है, तब इसी छोटे-से बीज से बरगद का विशाल वृक्ष उत्पन्न हो जाता है। यह कौन नहीं जानता? यानि इस बीज में वृक्ष दीखता नहीं है, फिर भी उत्पन्न होता है वृक्ष, बीज से ही। इसलिए बुद्धि से काम कुछ लो और प्रत्यक्ष देखकर परोक्ष को भी मानो। अगर बीज में वृक्ष, डाली, पत्ते आदि शक्ति रूप में विद्यमान न हो तो वह उत्पन्न कैसे होते। जब आंखो से देखने गये तब तो वृक्ष आदि कुछ दिखाई न दिया, लेकिन ज्ञान से देखा तो दिखाई दिये। यह बीज, जो तुम्हें नाचीज मालूम होता है, यह सभी कुछ है ! इसी प्रकार शरीर धारण करने के संस्कार आंखों से दिखाई नहीं देते लेकिन ज्ञान से देखने पर अवश्य प्रतीत होते हैं।
बरगद के छोटे-से बीज में वृक्ष का सारा सत्व खिंच आता है। उसके भीतर वृक्ष का मानों पूरा चित्र मौजूद है। जैसे सिनेमा वाले बड़ी से बड़ी चीज का छोटे से छोटा फोटो लेकर प्रकाश से फिर वैसी ही बड़ी चीज दिखलाते हैं, यही बात कर्मशास्त्र की भी समझिए। जैसे एक बड़े शहर का चित्र दाल के दाने बराबर छोटा हो सकता है, यही हाल कर्मों का भी है।
गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि-नरक के जीवों के कितने शरीर होते हैं? इसके उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम! नारकी जीवों के तीन शरीर होते हैं- एक स्थूल और दो सूक्ष्म । उनका स्थूल शरीर वैक्रियक है और सूक्ष्म शरीर तैजस तथा कार्मण है, जो कि समानरूप से सभी संसारी जीवों के होते हैं।
कार्मण शरीर कर्मों का खजाना है। वह अन्तः शरीर है। प्राणी जो कुछ करता है, उसका फोटो कार्मण शरीर में खिंचा जाता है फिर जैसे मिट्टी-पानी के संयोग से बड़ के छोटे-से बीज से विशाल वृक्ष उत्पन्न होता है, उसी प्रकार कार्मण शरीर के संस्कारों से स्थूल शरीर उत्पन्न होता है। वह कार्मण शरीर प्राणी का संस्कार-शरीर है। मृत्यु होने पर जीव स्थूल देह का त्याग करता है, लेकिन सूक्ष्म शरीर बने रहते हैं। कार्मण शरीर में प्राणी के ५२ श्री जवाहर किरणावली