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इनके अस्सी भंग होते हैं। आगे जघन्य स्थिति से असंख्यात समय अधिक स्थिति वाले जीवों से लेकर उत्कृष्ट स्थिति वाले जीवों का कभी विरह नहीं होता। अतएव उनमें जघन्य स्थिति वालों के समान सत्ताईस भंग ही होते हैं।
..यहां एक प्रश्न यह उपस्थित हो सकता है कि विरह काल का समय कौन-सा लिया जाय ? अगर उत्पाद का विरहकाल चौबीस मुहूर्त लिया जाय तो सूत्र का संबंध विछिन्न हो जाता है और जहां सत्ताईस भंग माने गये हैं वहां अस्सी भंग मानने पड़ेंगे। अतएव उत्पाद का विरहकाल न लेकर क्रोधोपयुक्त नारकी जीवों की सत्ता की अपेक्षा से ही विरहकाल लेना चाहिए।
४४ श्री जवाहर किरणावली