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उसका राष्ट्र मिटाने की चीज नहीं है। धर्म वास्तव में शान्तिकर्ता है, अशान्तिकारक नहीं। धर्म ईश्वर या आत्मा का संदेश है। धर्म के बिना जीवन नहीं रह सकता और यदि रहेगा भी तो यहीं नरक के नजारे नजर आएंगे। धर्म के अभाव में सर्वत्र हाय-हाय मच जायगी। अगर माता में धर्मबुद्धि न हो तो वह बालक का पालन-पोषण क्यों करे? आज के लोग चाहे धर्म के प्रति कृतघ्न हो जावें, लेकिन बुद्धि से विचार करने पर उन्हें अवश्य मालूम हो जायगा कि हमारी जिन्दगी धर्म के प्रताप से ही है।
आज संसार में ऐसे उपाय चले हैं, जिनसे संतान उत्पन्न होना बंद हो जाता है। कई लोग सोचते हैं। संतान होने से माता को कष्ट उठाना पड़ता है और पिता पर उत्तरदायित्व आ जाता है, पति-पत्नी के भोग-विलास का सुख चला जाता है। इस प्रकार सन्तान सब तरह से सुखों में बाधक है। ऐसे दुर्विचारों से प्रेरित होकर बहुत से लोगों ने कृत्रिम उपायों से सन्तति-निरोध का आश्रय ग्रहण किया है।
ऐसे उपायों का आविष्कार हृदयहीन मस्तक की उपज है। मस्तक विचारता है कि हम भोग के लिए उत्पन्न हुए हैं। सन्तान हमारे भोग-विलास में बाधा पहुंचाती है, इसलिए इस बाधा को हटा देना ही अच्छा है। लेकिन सहृदय व्यक्ति ऐसा नहीं सोचेगा। वह विचार करेगा कि अगर हमें संतानोत्पत्ति रोकनी है तो भोगविलास का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। भोग-विलास का त्याग करना और सेवाधर्म, प्रेम, दया, सहानुभूति आदि सात्विक भावना सिखाने वाले सन्तान-प्रसव को कृत्रिम उपाय से रोकना अच्छा नहीं है। सन्तान-प्रसव किये बिना स्त्रियां माता पद नहीं पा सकती मरणान्तक कष्ट भोग करके भी सन्तान का पालन-पोषण करने के कारण ही माता का महिमामय पद उन्हें प्राप्त होता है। अतएव कृत्रिम उपायों से सन्तति-निरोध करना घोर पाप है।
आज संसार में यह बड़ी गड़बड़ी चल रही है कि आर्थिक हानि करने वाले को तो धिक्कार दिया जाता है, लेकिन विषयभोग से शक्ति एवं जीवन नष्ट करने वाले को उलाहना भी नहीं दिया जाता। बल्कि इसीके लिए पुरुष शृंगार करते हैं और पुरुषों को विषय की अग्नि में जलाने के लिए कुलटाएं जो शृंगार करती थी वह शृंगार कुलांगनाएं करने लगी हैं। वे शायद यही सोचती हैं कि हम सुन्दर सुन्दर वस्त्राभूषण पहनें और श्रृंगार सजाएं, जिससे पुरुष विषय की आग में कूद पड़ें। मां-बाप अपने लड़के को धन खोते देखकर तो उलाहना देते हैं, लेकिन अगर वह धन कमाऊ हो किन्तु विषयवासना की ३६ श्री जवाहर किरणावली
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