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फिर वह मिथ्या उपदेश क्यों देते? अतएव उनके उपदेशों की सत्यता पर दृढ़ विश्वास रखकर समय मात्र का भी प्रमाद मत करो।
नव घाटी माहे भटकत भटकत पायो नरभव सार। . जाने पछे देवता जीवा थे, किम जावो छो हार।।
एक घाटी में नहीं, किन्तु नौ घाटियों में चक्कर काटते-काटते गाड़ी पार हुई है। अब मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है। अब पार लगी हुई गाड़ी को जान-बूझकर फिर क्यों चक्कर में डालते हो? यह मनुष्य जन्म वह है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं।
भक्ति में लगे हुए भक्त को कहीं न कहीं से कोई अच्छी बात हाथ लग ही जाती है। भक्त तुकाराम कहते हैं :
अनन्त जन्म ज्यारी केल्या तपराशी, तरी हाता पवषी यने देह। ऐसा हानिदान लाग लासी हाथी, ज्यांची केली माती भाग्यहीना। अन।।
उत्तमाचा सार बेदाचा भंडार, जयाते पवित्र तीर्थे होती। म्हणो तुकिया बन्धु आणी खऔप, नहीं यांचा जन्मी दयाव आसी। अन।।
__ महाराष्ट्र प्रदेश में मैं बारह वर्ष रह आया हूं। कहावत प्रसिद्ध है-'पूत जावे दक्षिण, कुछ तो लावे लक्षण। इसके अनुसार मैं दक्षिण से तुकारामजी की उक्त बात सीख कर आया हूं। हम मनुष्य हैं। हमारा कर्तव्य कम से कम मनुष्य मात्र से प्रेम रखना है। मनुष्य चाहे किसी भी जाति का हो, लेकिन मनुष्यत्व सभी के लिए दुर्लभ है।
तुकारामजी कहते हैं – अनन्तकाल तक तप किया-कष्ट उठाये, कीड़े-मकोड़े रहे तब कहीं यह मनुष्य-जन्म प्राप्त हुआ है। कहा जाता है कि पत्थर के कोयले और हीरे के परमाणु मूलतः एक ही जाति के हैं। जो कोयला पृथ्वी में करोड़ों वर्ष तक दबा रहता है, वह हीरे के रूप में परिणत हो जाता है; जो जल्दी खोद लिया जाता है वह पत्थर ही रह जाता है।
__ अगर यह सत्य है तो कोयले और हीरे के परमाणु एक ही हैं, अन्तर सिर्फ यह है कि कोयला जल्दी खोद लिया जाता है और हीरा पृथ्वी का भार वहन करता हुआ देर तक दबा पड़ा रहता है। फिर भी क्या कोयले को हीरे के समान माना जा सकता है? क्या दोनों के परमाणुओं को एक जाति समझ कर कोयले के बदले हीरा दिया जा सकता है? अगर कोई पुत्र ऐसा करेगा तो उसका पिता उसे कपूत और मूर्ख समझ कर नाराज न होगा?
इसी प्रकार चिरकाल तक अनेक विध कष्ट उठाने के पश्चात् अत्यन्त कठिनाई से मनुष्य जन्म मिलता है! तुकाराम कहते हैं, मूर्ख, ऐसे मनुष्यभव को मिट्टी के मोल गंवा रहा है। ३० श्री जवाहर किरणावली
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