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इत्यादि सूक्ष्म विचार में बहुधा भेद भी पाया जाता है। असत्य भाषण नहीं करना चाहिए, यह बात नास्तिक भी कहता है लेकिन असत्य भाषण क्यों नहीं करना चाहिए, यह बात अगर नास्तिक से पूछी जाय तो वह कहेगा-सत्य बोलना श्रेष्ठ आचार है। झूठ बोलने से जीवनक्रम नहीं चल सकता, समाज में शंका एवं अविश्वास का वातावरण फैलता है, अतः झूठ नहीं बोलना चाहिए। ऐसे समय में दार्शनिक सिद्धान्त बतलाकर यह सिद्ध करने की आवश्यकता है कि सिर्फ लोकाचार के लिए ही सत्य-भाषण नहीं किया जाता, किन्तु सत्य आत्मा का प्रसिद्ध बल है-आत्मा की प्रचंड एवं अजेय शक्ति है, इसलिए भी सत्य बोलने की आवश्यकता है। इसीके अनुसार गौतम स्वामी का यह प्रश्न है कि नरक के जीवों की जघन्य स्थिति से, उत्कृष्ट स्थिति से उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त कितने स्थान-विभाग हैं? भगवान् ने इस प्रश्न का उत्तर दिया है- हे गौतम ! असंख्यात स्थान हैं।
यहा प्रश्न खड़ा हो सकता है कि दस हजार वर्ष की स्थिति के भेद गिनने में असंख्यात किस प्रकार हो गये? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि काल-गणका के लिए विभिन्न देशों में तरह-तरह के विभागों की कल्पना की गई है। यूरोप–निवासियों ने समय के विभाग को समझने के लिए घण्टे, मिनट और सैकिंड की कल्पना की है। सैकिंड तक पहुंचकर उनकी गति रुक गई। भारतीय ज्योतिषियों ने घड़ी, पल और विपल में समय का विभाग किया। शायद इससे अधिक सूक्ष्म काल-गणना की लोक-व्यवहार में आवश्यकता नहीं समझी गई होगी, अन्यथा सैकिंड के भी विभाग क्यों नहीं किये जा सकते? मगर ज्ञानियों ने सूक्ष्म तत्व का निरूपण करने के उद्देश्य से काल के सूक्ष्मतम अंश का भी निरूपण किया है। काल का यह सूक्ष्मतम अंश, जो निरंश है, जिसका दूसरा अंश संभव नहीं है, 'समय कहलाता है। यों तो 'समय' शब्द का सामान्य लोकप्रचलित अर्थ काल (टाइम) है, मगर यहां यह सामान्य अर्थ नहीं लिया गया है, वरन् पूर्वोक्त विशेष अर्थ ही लिया गया है। एक सूक्ष्मतम समय में ही अनेक काम हो जाते हैं। एक समय मात्र अनन्त गुणहीन जीव अनन्त-गुण अधिक हो जाता है और अनन्तगुण अधिक जीव, अनन्त गुणहीन हो जाता है। एक समय में पुद्गल का एक परमाणु चौदह राजू लोक की यात्रा करके सिद्धशिला तक जा पहुंचता है।
भारत से विलायत जो तार जाता है, वह कुछ ही सैकिंड में चला जाता है। लेकिन वह झट से एक खंभे पर से होकर दूसरे खंभे पर और इसी प्रकार आगे चलता है। इस प्रकार जितने खंभों पर होकर तार जाता है, सैकिंड २८ श्री जवाहर किरणावली