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क्योंकि उनमें क्रोध बहुत है। एक बाप के चार पुत्र हों और उनमें क्रोध न हों तो शान्ति रहेगी। अगर वे सब क्रोधी हुए, आपस में लड़ने-झगड़ने लगे तो घर ही नरक हो जायगा। घर में सांसारिक सुखों के सब साधन मौजूद भी हों तब भी अगर भाई-भाई में लड़ाई-झगड़ा चलता हो तो वही सुख के साधन, दु:ख के साधन बन जाते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है। क्रोध की अधिकता से किस प्रकार अशान्ति की प्रचंड ज्वालाएं भभकीं? कैसे-कैसे घमासान युद्ध मचे, इस विषय की कथाएं सुनने पर हृदय द्रवित हो जाता है। बाप-बेटे, भाई-भाई और जिनका संबंध आजकल बहुत समीप का समझा जाता है, उन पति-पत्नी की लड़ाई देखो तो ज्ञान होगा कि ये घर नहीं, नरक
है।
कहावत प्रसिद्ध है कि रिस बड़ी सयानी होती है, इसलिए वह अपने पर ही आती है। अगर खुद का लड़का कोई काम बिगाड़ दे तो बहुत जल्दी आंखें लाल हो जाती हैं, कोई दूसरा बिगाड़े तो उतना और उतना जल्दी गुस्सा नहीं आता। लेकिन जहां प्रेम है, अपनापन है, वहां प्रेम के बदले क्रोध हो तो वहां नरक नहीं समझना चाहिए।
भगवान ने कहा-कभी-कभी नरक के सब जीव क्रोधी ही क्रोधी हो जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके मान, माया और लोभ का क्षय हो जाता है। यहां भगवान ने जो कहा है, वह शुद्ध ऋजुसूत्रनय की बात है। ऋजुसूत्रनय के अनुसार भगवान् ने फरमाया है कि नरक के सभी जीव कभी क्रोधी ही क्रोधी हो जाते हैं। एक भाव की प्रबलता में दूसरे भाव स्वाभाविक ही दब जाते हैं। इसी नियम के अनुसार क्रोध की प्रबलता में मान, माया और लोभ दब जाते हैं। मगर चारों ही प्रकृतियां विद्यमान अवश्य रहती हैं। केवल जिस समय जीवों का उपयोग क्रोध में रहता है, उस समय मान आदि में नहीं रहता।
___ऋजुसूत्रनय कहता है-मैं वर्तमान काल को ही मानता हूं, भूत और भविष्यकाल असत्-अविद्यमान हैं, इसलिए मैं उन्हें नहीं मानता। उदाहरणार्थ एक आदमी सामायिक ग्रहण करके बैठा है। अगर उस समय उसका चित्त संसार के व्यवहार की ओर गया तो ऋजुसूत्रनय उसे संसार व्यवहारी मानेगा, सामायिक निष्ट नहीं मानेगा। सामायिक में बैठने वाले का मन अगर मोची की दुकान पर गया, तो ऋजुसूत्रनय कहता है-वह मोची की दुकान का ग्राहक है, सामायिक करने वाला नहीं। सामायिक करने वाला वह तभी माना जायगा, जब उसका ध्यान सामायिक में हो। इसी प्रकार नरक के जीव जब क्रोध में
- भगवती सूत्र व्याख्यान ३३