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समझने चाहिए। और इसी प्रकार यावत्-संख्येय समयाधिक स्थिति वाले नारकों के लिए भी जानना। असंख्येय समयाधिक स्थिति के उचित उत्कृष्ट स्थिति में सत्ताईस भंग कहना चाहिए।
व्याख्यान पूर्वोक्त दस बातों में से पहले उम्र का विचार किया गया है। उम्र का विचार हुए बिना आयुकर्म की स्थिति की मर्यादा का पता नहीं लग सकता। अतएव गौतम स्वामी भगवान् महावीर से पूछते हैं-भगवन! पहली रत्नप्रभा नामक पृथ्वी में जो तीस लाख नारकावास हैं, उनमें रहने वाले जीवों की स्थिति (उम्र) बराबर है या स्थान-विभाग (कम-बढ़) है? अर्थात् एक नारकावास में रहने वाले जीवों की कितनी-कितनी स्थिति है?
___ गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम? नरक में रहने वाले जीवों की स्थिति के स्थान भिन्न-भिन्न हैं। किसी की जघन्य स्थिति है, किसी की मध्यम और किसी की उत्कृष्ट स्थिति है। इस पहली पृथ्वी के पहले प्रस्तर में रहने वाले नारक जीवों की आयु कम से कम दस हजार वर्ष की है और अधिक से अधिक नब्बे (90) हजार वर्ष की है। कम से कम आयु जघन्य कहलाती है और अधिक से अधिक आयु उत्कृष्ट आयु कहलाती है, जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की आयु को मध्यम आयु कहते हैं। मध्यामायु जघन्य या उत्कृष्ट के समान एक प्रकार की नहीं है। जघन्य आयु से एक समय अधिक की आयु भी मध्यम कहलाती है, दो समय अधिक की भी मध्यम कहलाती है, इसी प्रकार संख्यात और असंख्यात समय अधिक की मध्यम आयु ही कहलाती है। इस तरह मध्यम आयु के अनेक विकल्प हैं। अतः कोई नारकी दस हजार वर्ष की आयु वाला, कोई एक समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला कोई दो समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला, इसी प्रकार कोई असंख्यात समय अधिक दस हजार वर्ष की आयु वाला है, कोई अधिक उत्कृष्ट आयु वाला है। इसलिए नारकी जीवों के स्थितिस्थान असंख्य है।
श्रेष्ठ आचार की दृष्टि से तो प्रायः सब धर्मों का विचार समान होता है, लेकिन दार्शनिक सिद्धान्त की दृष्टि से जिसे जो धर्म युक्तिसंगत प्रतीत होता है, वही माना जाता है। उदाहरणार्थ-सत्य बोलने के विषय में सामान्य रूप से सभी धर्म एक हैं। असत्य बोलने का कोई धर्म समर्थन नहीं करता। यह एक स्थूल बात है। लेकिन सत्य कितने प्रकार का है, और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? और किस-किस प्रकार की वाणी असत्य होती है?
। भगवती सूत्र व्याख्यान २७