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हैं। लोग अपनी आंखों को सर्वदर्शी और अपने मस्तिष्क को ही सर्वज्ञ समझ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि आत्मा ज्ञानी तभी बनता है, जब वह अभिमान का नाश कर दे। अभिमान का नाश किस प्रकार हो सकता है, यह जानने के लिए पर्वत पर रहने वाले उस ज्ञानी की ओर दृष्टि दौड़ाओ। जैसे पर्वत पर चढ़ने पर नीचे की वस्तु छोटी दिखाई दे और उस समय यह समझना चाहिए कि वस्तु छोटी नहीं है - यह तो मेरा भ्रम है । वस्तु तो वास्तव में बड़ी ही है। इसी प्रकार अहमन्यता के पहाड़ पर चढ़कर सब को छोटा मानना अभिमान है और यह विचार करना कि यह मेरा भ्रम है, मैं बड़ा नहीं हूं अभिमान का नाश करना है । ज्ञानी जनों का कथन है कि हम छोटे-बड़े का भेद समझ कर अभिमान मिटाने के लिए ही सब जीवों का ठीक-ठीक हिसाब कर रहे हैं।
कदाचित् पहाड़ पर चढ़ा हुआ आदमी अभिमान का मारा नीचे के लोगों को छोटा भी समझे लेकिन नीचे वालों को पहाड़ पर चढ़ा हुआ व्यक्ति छोटा दिखाई देगा या बड़ा?
'छोटा !'
अब कौन बड़ा और कौन छोटा रहा? जो दूसरों को अपने से छोटा देखता है, उसे दूसरे लोग अपने से भी छोटा समझते हैं। अभिमानी पुरुष के लिए यह पुरस्कार संभवतः समुचित ही है। मगर ज्ञानी पुरुष कहते हैं- स्थान आदि को छोड़कर देखो तो मालूम होगा कि वास्तव में कौन बड़ा? और कौन छोटा है ? जिसके हृदय से अभिमान गया, वही सम्यग् - दृष्टि बन जाता है। ज्ञान होने पर भी अगर कोई सम्यग्दृष्टि नहीं है तो समझना चाहिए कि उसका ज्ञान, अज्ञान - मिथ्याज्ञान है। सच्चे ज्ञान के होने पर अभिमान उसी प्रकार गल जाता है, जैसे सूर्य के उदय होने पर तम विलीन हो जाता है।
इस संसार में किन-किन प्राणियों के निवास स्थान हैं, यह बात ऊपर बतलाई गई है । रत्नप्रभा पृथ्वी पर 84 लाख नरकावास हैं । उनमें असंख्य नारकी जीव रहते हैं। एक घर में अनेक मनुष्य होने पर भी घर एक ही गिना जाता है, उसी प्रकार एक-एक आवास में असंख्य असंख्य नारकियों का वास होने पर भी आवास एक ही गिना जाता है।
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अब गौतम स्वामी यह प्रश्न करते हैं कि चौरासी लाख जीव योनियों में जैसा ऊंच-नीच का अन्तर है, वैसा इन नारकी जीवों में है या नहीं ? इस सम्बन्ध में गौतम स्वामी जो जो जो प्रश्न करेंगे, वे दस बातों से सम्बन्ध रक्खेंगे। वह दस बातें एक संग्रहगाथा में बतलाई गई है। मूल पाठ इस प्रकार है :
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श्री जवाहर किरणावली